अंतर्यामी से -
बहुत हुए अध्याय कथा के, रहे-बचे सो और निबेरो,
*
मेरे चाहे से क्या, होगा वही तुम्हारी जैसी इच्छा,
और कहाँ तक इसी तरह लोगे पग-पग पर विषम परीक्षा,
भार बढ़ रहा प्रतिपल कुछ तो सहन-शक्ति की सीमा हेरो .
*
मेरी लघु सामर्थ्य ,तुम्हारी अपरंपार अकथ क्षमताएं
कितना और सँभाल सकेंगी थकी हुई ये निर्बल बाहें ,
दीन न हो आश्वस्त रहे मन , ऐसे विश्वासों से घेरो !
*
थोड़ा सा विश्राम मिले जीवन भर के इस थके पथिक को ,
मेरा क्या था ,अब तक देते आए तुम अब वही समेटो.
चरम निराशाएं घेरें जब कोई किरण-सँदेश उकेरो ,
*
उतनी खींचो डोर कि तनकर हो न जाय सब रेशा -रेशा ,
थोड़ा- सा विश्वास जगे तो, विचलित करता रहे अँदेशा .
अंतर की उत्तप्त व्यथाओं पर प्रसाद-कण आन बिखेरो !
*
मेरे अंतर्यामी ,दो सामर्थ्य कि निभा सकूँ अपना व्रत,
अंतिम क्षण तक खींच सकूँ इन चुकती क्षमताओं का संकट,
'थोड़ा-सा बस और' यही कह-कह कर अवश हृदय को प्रेरो !
*
मेरे अंतर्यामी ,दो सामर्थ्य कि निभा सकूँ अपना व्रत,
जवाब देंहटाएंअंतिम क्षण तक खींच सकूँ इन चुकती क्षमताओं का संकट,
'थोड़ा-सा बस और' यही कह-कह कर अवश हृदय को प्रेरो !
ह्रदय से निकली अति सुंदर प्रार्थना ..!!
पल पल को जब मान मिलेगा,
जवाब देंहटाएंजीवन को सम्मान मिलेगा।
मन से निकली प्रार्थना ... बहुत सुन्दर भाव और शब्दों को संजोया है ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंमेरे अंतर्यामी ,दो सामर्थ्य कि निभा सकूँ अपना व्रत,
जवाब देंहटाएंअंतिम क्षण तक खींच सकूँ इन चुकती क्षमताओं का संकट,
'थोड़ा-सा बस और' यही कह-कह कर अवश हृदय को प्रेरो !
*bahut sunder bhav liye saarthak rachanaa .badhaai.
please visit my blog.thanks.
बहुत गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंमन को शांत करती, सुखद अनुभूति देती निर्मल निर्झरिणी सी कविता।
जवाब देंहटाएंतृप्ति देते शब्द स्वतः आकार लेते हैं।
very insightful Mam :)
जवाब देंहटाएंजब जब परिस्थितयां कमज़ोर करने लगें तब तब यही प्रार्थना दोहराता है मन...प्रतिभा जी....ऐसे भाव पंक्तिबद्ध करकर दूसरों के हृदय को भी संबल देती है आपकी लेखनी यहाँ ....और सच कहूं....तो प्रार्थना के लिए तो कोई शब्द नहीं...मगर इस कविता का उदगम जीवन के किसी दु:खी क्षण से तो नहीं यही सोच रही हूँ|
जवाब देंहटाएं"थोड़ा-सा बस और"
जवाब देंहटाएंअति सुंदर!
उतनी खींचो डोर कि तनकर हो न जाय सब रेशा -रेशा ,
जवाब देंहटाएंथोड़ा- सा विश्वास जगे तो, विचलित करता रहे अँदेशा .
कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.... संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
achhi abhivyakti.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण!!!
जवाब देंहटाएंहृदय की गहराइय़ों से निकला हर भाव आस्था से ओतप्रोत है, जो सागर की अतल गहराइयों से निकले मूल्यवान मोतियों की तरह मन को आकृष्ट कर रहा है। अति सुन्दर एवं प्रभावी अभिव्यक्ति!!!
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