*
झकोर-झकोर धोती रही ,
सँवराई संध्या,
पश्चिमी घाट के लहरते जल में ,
अपने गैरिक वसन .
फैला दिये क्षितिज की अरगनी पर
और उतर गई गहरे
ताल के जल में .
*
डूब-डूब , मल-मल नहायेगी रात भर .
बड़े भोर निकलेगी जल से .
उजले-निखरे स्निग्ध तन से झरते
जल-सीकर घासों पर बिखेरती ,
ताने लगाते पंछियों की छेड़ से लजाती,
दोनों बाहें तन पर लपेट
सद्य-स्नात सौंदर्य समेट ,
पूरव की अरगनी से उतार उजले वस्त्र
हो जाएगी झट
क्षितिज की ओट !
*
झकोर-झकोर धोती रही ,
सँवराई संध्या,
पश्चिमी घाट के लहरते जल में ,
अपने गैरिक वसन .
फैला दिये क्षितिज की अरगनी पर
और उतर गई गहरे
ताल के जल में .
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डूब-डूब , मल-मल नहायेगी रात भर .
बड़े भोर निकलेगी जल से .
उजले-निखरे स्निग्ध तन से झरते
जल-सीकर घासों पर बिखेरती ,
ताने लगाते पंछियों की छेड़ से लजाती,
दोनों बाहें तन पर लपेट
सद्य-स्नात सौंदर्य समेट ,
पूरव की अरगनी से उतार उजले वस्त्र
हो जाएगी झट
क्षितिज की ओट !
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संध्या का सौंदर्य, नारीकरण और और गैरिक-उजले वस्त्र, सौंदर्य अटा पड़ा है। मोहक चित्र उभर आए..
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी, इस कविता ने मन मोह लिया। आप ने संध्या को इतने खूबसूरत रूप में देखा और दिखाया है कि मैं अभिभूत हो गया। प्रकृति के नर्तन को इस तरह अभिव्यक्त करना, मेरे पास अभिव्यक्ति के लिए शब्द नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंइस कविता के लिए आप को बहुत बहुत बधाई।
जब तक मनुष्य रहेगा, यह कविता इसी तरह युवा बनी रहेगी।
सांझ का सुन्दर वर्णन ...मानवीकरण मन को भा गया ..
जवाब देंहटाएंसौन्दर्य का उत्कृष्ट चित्रण।
जवाब देंहटाएंबड़ा अच्छा चित्रण किया है आपने।
जवाब देंहटाएंहिंदी में सभी बड़े कवियों ने संध्या का चित्रण किया है. आपका यह चित्र अछूते रूपक के सहारे उसका सर्वथा मौलिक दिशा में विकास करता है.
जवाब देंहटाएंलोकजीवन और लोकशब्दों की यह ताजगी आज दुर्लभ होती जा रही है.
साँझ ही इनती खूबसूरत थी या इन शब्दों का जामा पहन कर हो गयी ..सोच में हूँ !
जवाब देंहटाएंसायंकालीन और प्रभातकालीन संधिप्रकाश प्रहर की सन्ध्या एवं उषा के
जवाब देंहटाएंनारी रूप को सद्यस्नाता नारी के सांगोपांग रूप से सुसज्जित करके जो मोहक चित्र प्रस्तुत किया गया है, वह अद्भुत है। अनूठा है।
आपकी कमनीय कल्पना की सुललित अभिव्यक्ति का साधुवाद!!!
डूब-डूब , मल-मल नहायेगी रात भर .
जवाब देंहटाएंबड़े भोर निकलेगी जल से .
उजले-निखरे स्निग्ध तन से झरते
जल-सीकर घासों पर बिखेरती ,
आदरणीय प्रतिभा जी
आपने बहुत सुंदर चित्रण किया है ..बहुत खूब
प्रतिभा जी, इस कविता ने मन मोह लिया।
जवाब देंहटाएंसौन्दर्य का उत्कृष्ट चित्रण
आपकी कविता मन के तारों को झंकृत कर गयी।सांध्य चित्रण अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंकितना साधारण है भोर का दोपहर और फिर सांझ में ढलना.....मगर आपने उसे भी असाधारण बना ही दिया..........बहुत मनमोहक लगा हर दृश्य.....:)
जवाब देंहटाएंप्रकृति के रूप का वर्णन करती बेहतरीन कविता ! बहुत अच्छा लगा पढ़कर !
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