शनिवार, 18 सितंबर 2010

संबंध

*
नदी की तरह निस्स्वार्थ बहते हैं .

वही सहज होते हैं
.
अपनी मौजों में,अपने ढंग से

अपने रंग में लीन ,

रहते हैं संबध.

*

भुनाने की कोशिशें.

और अहं के ढेले फेंक ,

लहरें उठाने का चाव

बाधित कर देगा प्रवाह.

पारदर्शिता खो गँदला जाएगा.

निर्मल जल.

कीचड़ जमे तल में .

कैसे रहे प्रवाह तरल -सरल.

*

क्षेपकों की संरचना

घने वाग्जाल ,

ओझल जल-विवर

डुबोने वाले भँवर

जिनका कोई उपचार नहीं.

खा जाए चक्कर

पर उबरती है धारा,

खोजती अपना किनारा.

*

बाध्यता नहीं कि,

आत्मसात करे उन अग्राह्य अणुओं को ,

धारा का स्वभाव अपनी ढलान बहना,

संबंध का निभाव परस्पर समझना.

उछाला गया आवेग

निष्फल आक्रोश ,

इसी तट बिखेर

रुख मोड़ ,

तोड़ देगी हर कारा.

*

शिरोधार्य हैं पथ -प्रवाह में मिली

अविकृत पुष्प-पत्राँजलियाँ ,

प्रतिदान की अपेक्षा बिना

पाए निस्पृह नेह-क्षण,

जिन्हें लहराँचल में सँजोए

बह जाएगी आगे

संबंधों की धारा.

*

11 टिप्‍पणियां:

  1. नदी की तरह निस्स्वार्थ बहते हैं .

    वही सहज होते हैं .

    अपनी मौजों में,अपने ढंग से

    अपने रंग में लीन ,

    होते हैं संबध.

    अच्छी पंक्तिया ........

    इसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
    (आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??)
    http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_19.html

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  2. शिरोधार्य हैं पथ -प्रवाह में मिली
    अविकृत पुष्प-पत्राँजलियाँ ,
    प्रतिदान की अपेक्षा बिना
    पाए निस्पृह नेह-क्षण,
    जिन्हें लहराँचल में सँजोए
    बह जाएगी आगे
    संबंधों की धारा.

    बहुत सुन्दर कविता
    ब्रह्माण्ड

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  3. नदी की तरह निस्स्वार्थ बहते हैं .

    वही सहज होते हैं .

    अपनी मौजों में,अपने ढंग से

    अपने रंग में लीन ,

    होते हैं संबध.
    सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. धारा का स्वभाव अपनी ढलान बहना,

    संबंध का निभाव परस्पर समझना.

    है क्षणिका सीख देती हुई ....मन पढ़ कर भाव विभोर है ..

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  5. रिश्तों की उपमा में अच्छी अभिव्यक्ति.

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  6. बहुत सुन्दर हैं हर शब्द और उनका मर्म... विभोर हुआ अंतस.

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  7. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 22 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  8. Sahaj hai to sambandh hai anyatha bojh hi hai... sundar rachna...

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  9. सरल जीवन नदी सा ,
    लहराँचल में सँजोए
    बह जाएगी आगे
    संबंधों की धारा.
    अच्छी कविता !

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