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नदी की तरह निस्स्वार्थ बहते हैं .
वही सहज होते हैं
.
अपनी मौजों में,अपने ढंग से
अपने रंग में लीन ,
रहते हैं संबध.
*
भुनाने की कोशिशें.
और अहं के ढेले फेंक ,
लहरें उठाने का चाव
बाधित कर देगा प्रवाह.
पारदर्शिता खो गँदला जाएगा.
निर्मल जल.
कीचड़ जमे तल में .
कैसे रहे प्रवाह तरल -सरल.
*
क्षेपकों की संरचना
घने वाग्जाल ,
ओझल जल-विवर
डुबोने वाले भँवर
जिनका कोई उपचार नहीं.
खा जाए चक्कर
पर उबरती है धारा,
खोजती अपना किनारा.
*
बाध्यता नहीं कि,
आत्मसात करे उन अग्राह्य अणुओं को ,
धारा का स्वभाव अपनी ढलान बहना,
संबंध का निभाव परस्पर समझना.
उछाला गया आवेग
निष्फल आक्रोश ,
इसी तट बिखेर
रुख मोड़ ,
तोड़ देगी हर कारा.
*
शिरोधार्य हैं पथ -प्रवाह में मिली
अविकृत पुष्प-पत्राँजलियाँ ,
प्रतिदान की अपेक्षा बिना
पाए निस्पृह नेह-क्षण,
जिन्हें लहराँचल में सँजोए
बह जाएगी आगे
संबंधों की धारा.
*
नदी की तरह निस्स्वार्थ बहते हैं .
जवाब देंहटाएंवही सहज होते हैं .
अपनी मौजों में,अपने ढंग से
अपने रंग में लीन ,
होते हैं संबध.
अच्छी पंक्तिया ........
इसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
(आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_19.html
शिरोधार्य हैं पथ -प्रवाह में मिली
जवाब देंहटाएंअविकृत पुष्प-पत्राँजलियाँ ,
प्रतिदान की अपेक्षा बिना
पाए निस्पृह नेह-क्षण,
जिन्हें लहराँचल में सँजोए
बह जाएगी आगे
संबंधों की धारा.
बहुत सुन्दर कविता
ब्रह्माण्ड
नदी की तरह निस्स्वार्थ बहते हैं .
जवाब देंहटाएंवही सहज होते हैं .
अपनी मौजों में,अपने ढंग से
अपने रंग में लीन ,
होते हैं संबध.
सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई
सरल तरल जीवन, नदी की तरह।
जवाब देंहटाएंधारा का स्वभाव अपनी ढलान बहना,
जवाब देंहटाएंसंबंध का निभाव परस्पर समझना.
है क्षणिका सीख देती हुई ....मन पढ़ कर भाव विभोर है ..
रिश्तों की उपमा में अच्छी अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हैं हर शब्द और उनका मर्म... विभोर हुआ अंतस.
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्द चयन ,अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 22 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
Sahaj hai to sambandh hai anyatha bojh hi hai... sundar rachna...
जवाब देंहटाएंसरल जीवन नदी सा ,
जवाब देंहटाएंलहराँचल में सँजोए
बह जाएगी आगे
संबंधों की धारा.
अच्छी कविता !