रविवार, 15 अगस्त 2010

व्याध का तीर

*
ये सब तो मात्र  मोहरे थे
यहाँ की चालों के .
इस महासमर की भूमिका
बहुत पहले से लिखी जाने लगी थी.
 *
जब बुढ़ापे  की सर्वनाशी वासना ,
यौवन का उजला भविष्य निगल गई.
स्वयंवरा कन्या को लूट का माल बना
निःसत्व रोगियों के हवाले कर दिया गया.
*
 वंश न पांडु का,  न कुरु का.
बीज बो गया  धीवर-कन्या का पुत्र
 भयभीत और वितृष्णामय परिवेश में ,
उन  विकृत संतानो  का इतिहास कितना चलता ?
जहाँ विवश नारी ,
पति का मुख देखे बिना

आँखों पर पट्टी बाँध
यंत्रवत् पैदा कर दे सौ पुत्र

*
धर्म और नीति की ओट ले
 जो चालें चली गईं -
एक  द्रौपदी ही नहीं ,
क्या-क्या दांव लगाते गए वे लोग ,
होना ही था महासमर !
*
रामायण और महाभारत !
एक व्याध का  तीर
कर गया
एक युग-कथा का प्रारंभ ,
और दूसरी का समापन .
*
बीत गए दोनों ,
पर बीत कर भी
 कहीँ अटका ही रह गया है .
बहुत कुछ .
*


8 टिप्‍पणियां:

  1. ये सब तो मात्र मोहरे थे
    यहाँ की चालों के .
    इस महासमर की भूमिका
    बहुत पहले से लिखी जाने लगी थी.


    बेहद प्रभावशाली पोस्ट !
    samay हो तो अवश्य पढ़ें:

    पंद्रह अगस्त यानी किसानों के माथे पर पुलिस का डंडा
    http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_15.html

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  2. बहुत सटीक प्रस्तुतिकरण ....सच यह सब तो मोहरे थे ..

    वंश न पांडु का, न कुरु का.
    बीज बो गया धीवर-कन्या का पुत्र
    भयभीत और वितृष्णामय परिवेश में ,
    कटु सत्य को बताती रचना ..

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  3. बीत गए दोनों ,
    पर बीत कर भी
    कहीँ अटका ही रह गया है .
    बहुत कुछ .

    कितने दिनों तक घुमड़ेंगे ये बादल...ऐसे ही तो नहीं लिखा जाता ऐसा...आपका लिखा हुआ पढना एक अनुभव को जीना है.

    बहुत धन्यवाद इसे लिखने के लिए.

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  4. मंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. सुंदर प्रस्तुति!


    “कोई देश विदेशी भाषा के द्वारा न तो उन्नति कर सकता है और ना ही राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति।”

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  6. कभी कभी तो सच में ही लगता है कि यह महासमर होना ही था। बहुत सुन्दर रचना।

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  7. .
    बेहद प्रभावशाली पोस्ट !

    zealzen.blogspot.com

    ZEAL

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