ये सब तो मात्र मोहरे थे
यहाँ की चालों के .
इस महासमर की भूमिका
बहुत पहले से लिखी जाने लगी थी.
*
जब बुढ़ापे की सर्वनाशी वासना ,
यौवन का उजला भविष्य निगल गई.
स्वयंवरा कन्या को लूट का माल बना
निःसत्व रोगियों के हवाले कर दिया गया.
*
वंश न पांडु का, न कुरु का.
बीज बो गया धीवर-कन्या का पुत्र
भयभीत और वितृष्णामय परिवेश में ,
उन विकृत संतानो का इतिहास कितना चलता ?
जहाँ विवश नारी ,
पति का मुख देखे बिना
आँखों पर पट्टी बाँध
यंत्रवत् पैदा कर दे सौ पुत्र
*
धर्म और नीति की ओट ले
जो चालें चली गईं -
एक द्रौपदी ही नहीं ,
क्या-क्या दांव लगाते गए वे लोग ,
होना ही था महासमर !
*
रामायण और महाभारत !
एक व्याध का तीर
कर गया
एक युग-कथा का प्रारंभ ,
और दूसरी का समापन .
*बीत गए दोनों ,
पर बीत कर भी
कहीँ अटका ही रह गया है .
बहुत कुछ .
*
ये सब तो मात्र मोहरे थे
जवाब देंहटाएंयहाँ की चालों के .
इस महासमर की भूमिका
बहुत पहले से लिखी जाने लगी थी.
बेहद प्रभावशाली पोस्ट !
samay हो तो अवश्य पढ़ें:
पंद्रह अगस्त यानी किसानों के माथे पर पुलिस का डंडा
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_15.html
बहुत सटीक प्रस्तुतिकरण ....सच यह सब तो मोहरे थे ..
जवाब देंहटाएंवंश न पांडु का, न कुरु का.
बीज बो गया धीवर-कन्या का पुत्र
भयभीत और वितृष्णामय परिवेश में ,
कटु सत्य को बताती रचना ..
बीत गए दोनों ,
जवाब देंहटाएंपर बीत कर भी
कहीँ अटका ही रह गया है .
बहुत कुछ .
कितने दिनों तक घुमड़ेंगे ये बादल...ऐसे ही तो नहीं लिखा जाता ऐसा...आपका लिखा हुआ पढना एक अनुभव को जीना है.
बहुत धन्यवाद इसे लिखने के लिए.
मंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं“कोई देश विदेशी भाषा के द्वारा न तो उन्नति कर सकता है और ना ही राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति।”
बहुत सटीक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंकभी कभी तो सच में ही लगता है कि यह महासमर होना ही था। बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंबेहद प्रभावशाली पोस्ट !
zealzen.blogspot.com
ZEAL