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कितनी मक्खियाँ उड़ रही हैं !
नहीं ये कविताएं हैं ,
पत्रिकाओं पर जम जाने के लिए -मिठाई हो जैसे !
हाथ हिलाता परेशान संपादक बेचारा ,
जितनी हटाओ और उड़ आती हैं ,
एक बार मे कितनी-कितनी !
सबसे आसान काम - कविता लिख डालो ,
दूसरे लोग हैं न सोचने को समझने को !
शब्द ?
डिक्शनरी उठा लो ,जितने चाहो छाँट लो !
तुक मिलाना जरूरी नहीं !
जो लिखो- वाह !वाह !
विज्ञापन से बची किसी खाली जगह को
भरने के काम आ जाय बस काफ़ी है !
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sach me ajkal aisa hona bahut aam sa hai.
जवाब देंहटाएंsatya kataksh
सुन्दर है ।
जवाब देंहटाएंsahi farmaya aapne !
जवाब देंहटाएंआज ना छंद है ना ताल है
जवाब देंहटाएंतभी हम जैसे कवियों का यह हाल है
भाव से ज्यादा विचार आते हैं
और यही विचार औरों को रुलाते हैं
पर क्या करें ?
अपनी भडास तो निकल जाती है
और हर भड़ास
आज कल कविता कहलाती है.. :):)
बहुत सुन्दर लिखा है....सटीक...
वाह! ये तरक़ीब दिमाग में आई ही नहीं कभी....सच ही तो है..शब्द आसानी से उपलब्ध हैं....:o:o
जवाब देंहटाएंबहुत तीखा व्यंग्य ! :)