गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

हिसा हिलाल !

हिसा हिलाल !
अभिनन्दन करती हूँ
मैं तुम्हारा !
तुमने सिद्ध कर दिया
कि अबला नहीं है एक अकेली नारी भी !
समर्थ है वह अकेली ही
उस समूची व्यवस्था को हिला देने में
जो अपने दानवी शिकंजों में
मानव-जीवन की सारी उपलब्धियाँ
नष्ट-भ्रष्ट करने पर उतारू है !
इन्सानियत को पैदा कर
ममता से पोषण देने वाली
मातृशक्ति को पैरों तले रौंद कर
वर्जनाओं में लपेट कर
बंद कर दिया सात तालों में ,
कि सारी मानवता को भेड़-बकरी बना कर
चरागाहों में बाँध दें !
कि इस धऱती के उज्ज्वल भविष्य को
अँधेरों में परिणत कर जकड़ दें
कि वे अपनी दानवी लीला का विस्तार कर सकें !
*
हिसा हिलाल ,
नमन करती हूँ -
तुममें निहित उस आदि शक्ति को,
जो पशुता के सामने सिर उठा कर डट गई है!
जो अतिचारी के अधीन कभी नहीं हुई ,
जो सदा शिवत्व हेतु तपी ,
और प्राप्त कर के रही !
जगत का नारीत्व संन्नद्ध हो रहा है
अपनी शक्तियाँ संयोजित कर ,
तुम्हारे साथ आने को !
*
स्वागत है तुम्हारा
उज्ज्वल भविष्य की वैतालिका,
सफलता तुम्हारा प्राप्य है !

1 टिप्पणी:

  1. 'हिसा हिलाल'

    हम्म.......मैंने पता कर लिया कि ये कौन हैं....और आपने क्यूँ इन पर लिखा...:)
    शुरुआत कि एक दो पंक्तियाँ पढ़कर ही बांछें खिल गयीं कि मेरा पसंदीदा विषय उठाया है आपने और बहुत सशक्त लहजे में शुरुआत की है.....''हिसा हिलाल'' पढ़कर लगा अरबी या फ़ारसी कोई बढियां सा शब्द होगा...जिसका अच्छा सा अर्थ होगा...वही देखने के लिए गूगल में डाला...तो एक कवियत्री का नाम आया सामने...:) पढ़ा मैंने उन पर काफ़ी कुछ......सच में मैं खुद नमन करती हूँ और दुआ भी...माँ शक्ति इनके उद्देश्य को पूरा करें....क्यूंकि अन्याय के खिलाफ वे आवाज़ बुलंद तो कर ही रहीं हैं......उससे भी बड़ी बात है..एक ऐसे देश में आवाज़ उठाना जहाँ औरतों का वजूद महज नकाब की देहलीज़ तक महफूज़ है.....जहाँ लरजते हुए लबों को भी नागवार नज़रों से देखा जाता है...:(

    आपके शब्दों का आभार.....जो ऐसी शख्सियत के बारे में जाना मैंने...अन्यथा सदैव अनजान ही रहती....औरत का ये रूप मेरे लिए आदरणीय तो है ही...उससे ज़्यादा प्रेरणादायक और संतुष्टि देने वाला है.....:):)

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