यहाँ दिन है वहाँ तो रात होगी !
नयन भर स्वप्न की माया तुम्हारे साथ होगी !
*
यहाँ तो धूप इतनी सिर उठाने ही नहीं देती ,
नयन को किसाकिसाती उड़ रही है किरकिरी रेती
वहाँ तो चाँदनी की स्निग्ध-सी बरसात होगी
*
इधर की हवा कुछ बदली हुई बेचैन लगती ,
किरण इन मरुथलों में भटकती सी भरम रचती ,
वहाँ विश्राम होगा , चैन की हर सांस होगी .
*
बने हर बात का तूफ़ान, मन बस चुप अकेला ,
दिखाई दे रहा बस ,दूर तक सुनसान फैला ,
यहाँ बस हूँ ,वहाँ तो साथ होगा दोस्ती आबाद होगी .
अपनी दोस्त की याद आ गयी ये पंक्तियाँ पढ़ कर...........
जवाब देंहटाएंलगा था..हलकी फुलकी पंक्तियाँ हैं...मगर अंत में मन भीग गया.....कुछ यादें ताज़ा हो गयीं...
''वहाँ विश्राम होगा , चैन की हर सांस होगी .''
ये पंक्ति उस अंतरे में तो बहुत भली भली लगती है...मगर प्रतिभा जी...अंत वाले छंद के साथ यही पंक्ति शूल की तरह चुभती है.........कुछ शब्द याद आ गए...इसी विश्राम वाली बात पर...
''पीड़ादायी है ये विवशता जब स्वयं को विवश न पाती हूँ,
फिर भी सहती हूँ वेदना स्वयं पर अंकुश लगाती हूँ..''
कोई अपना सात समंदर पार सुकून से न हो तो उससे जुड़े हुए कैसे चैन से रह सकते हैं ना प्रतिभा जी......??
''बने हर बात का तूफ़ान, मन बस चुप अकेला ,''
इसी पंक्ति में व्यक्त दशा के साथ कविता का समापन किया .....
अच्छा लगा इस कविता को पढ़ना...अपनी स्मृतियों में खोना....
बधाई कविता के लिए...प्रतिभा जी!
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'मंगलवार' ०९ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए बड़े हर्ष का अनुभव हो रहा है कि ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग 'मंगलवार' ९ जनवरी २०१८ को ब्लॉग जगत के श्रेष्ठ लेखकों की पुरानी रचनाओं के लिंकों का संकलन प्रस्तुत करने जा रहा है। इसका उद्देश्य पूर्णतः निस्वार्थ व नये रचनाकारों का परिचय पुराने रचनाकारों से करवाना ताकि भावी रचनाकारों का मार्गदर्शन हो सके। इस उद्देश्य में आपके सफल योगदान की कामना करता हूँ। इस प्रकार के आयोजन की यह प्रथम कड़ी है ,यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा। आप सभी सादर आमंत्रित हैं ! "लोकतंत्र" ब्लॉग आपका हार्दिक स्वागत करता है। आभार "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंवाह!!इतने में बहुत कुछ कह गई आप ....लाजवाब !!
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