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प्रिय धरित्री,इस तुम्हारी गोद का आभार ,
पग धर , सिर उठा कर जी सके .
तुमको कृतज्ञ प्रणाम !
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ओ, चारो दिशाओँ ,
द्वार सारे खोल कर रक्खे तुम्हीं ने .
यात्रा में क्या पता
किस ठौर जा पाएँ ठिकाना.
शीष पर छाये खुले आकाश ,
उजियाला लुटाते ,
धन्यता लो !
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पञ्चभूतों ,
समतुलित रह,
साध कर धारण किया ,
तुमको नमस्ते !
रात-दिन निशिकर-दिवाकर
विहर-विहर निहारते ,
तेजस्विता ,ऊर्जा मनस् सञ्चारते ,
नत-शीश वन्दन !
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हे दिवङ्गत पूवर्जों ,
हम चिर ऋणी ,
मनु-वंश के क्रम में
तुम्हीं से क्रमित-
विकसित एक परिणति -
पा सके हर बीज में
अमरत्व की सम्भावना ,
अन्तर्निहित निर्-अन्त चिन्मय भावना .
श्रद्धा समर्पित !!!
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- प्रतिभा.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 04 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार,दिग्विजय जी.
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-09-2020) को "शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3815) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आभारी हूँ,आ.शास्त्री जी.
हटाएंनमन श्रद्धा समर्पित । सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंआपके सृजन के समक्ष नतमस्तक हूँ । अत्यन्त सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसदा की तरह सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंपूर्वजों के प्रति भावों को नमन ...
जवाब देंहटाएंइस सुन्दर काव्यमय रचना का अभिनन्दन ...
प्रकृति और पूर्वजों को इस तरह याद करना और संकल्पित होना बहुत अच्छा लगा प्रतिभा जी
जवाब देंहटाएंसबसे पहले आप की लेखनी को शत शत नमन,पूर्वजों के प्रति भावो को नमन, आदरणीया प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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