*
गौरा बिदा हुई चललीं , धूम भइ तिहुँ खण्डा ,
नैना भरे माई दिहिले, सुहाग भरि- भरि हंडा.
फैली खबर, सब हरषीं ,मेहरियाँ दौरि परलीं,
गौरा के चरनन लगि-लगि ,सुहाग जाँचन$ लगलीं !
*
खेतन ते भागीं, पनघट से भगि आईं, घाटन से दौरी धुबिनियाँ,
गोरस बहिल, ऐसी लुढ़की मटकिया तौ हूँ न रुकली बवरिया.
दौरी भड़भूँजी, मालिन, कुम्हारिन ,बढ़नी उछारि कामवारी,
गौरा लुटाइन सुहाग दोउ हाथन, लूटैं जगत के नारी !
*
ऊँची अटारिन खबर भइली, साज साजै लागीं घरनियाँ,
करिके सिंगार,घर-आँगन अगोरे तक,बचली फकत एक हँडिया.
चुटकी भरि गौरा उनहिन को दिहला, 'एतना रे भाग तुम्हारा,
दौरि-दौरि लूटि-लूटि लै गईं लुगइयाँ, जिनके सिंगार न पटारा !
*
' एही चुटकिया जनम भर सहेजो, मँहगा सुहाग का सिंदुरवा.
तन-मन में पूरो, अइसल सँवारो रंग जाये सारी उमरिया !'
गिनती की चुरियाँ,बिछिया,महावर,सिंदुरा,सहेजें कुलीना ,
गौरा की किरपा कमहारिन पे तिनको सुहाग नित नवीना!
*
भुरजी, कुम्हरिन ते माँगे #दुआरे जाइ , आँचल पसारि गुहरावें ,
मंगल बियाह-काज इन बिन न पुरवै, कन्या सुहाग-भाग पावे .
गौरा का सेंदुर अजर-अमर भइला, उन जइस को बड़भागिन रे,
इनही से पाये सुहाग-सुख-दूध-पूत, तीनिउँ जगत की वासिन रे !
*
( $ जाँचन= याचना करना ,माँगना .
# यह एक रिवाज़ है कि विवाह से पहले स्त्रियाँ सुहाग की याचना करने भड़भूँजिन , कुम्हरिन आदि के पास जाती हैं , वही कन्या को चढ़ाया जाता है .).
*
गौरा बिदा हुई चललीं , धूम भइ तिहुँ खण्डा ,
नैना भरे माई दिहिले, सुहाग भरि- भरि हंडा.
फैली खबर, सब हरषीं ,मेहरियाँ दौरि परलीं,
गौरा के चरनन लगि-लगि ,सुहाग जाँचन$ लगलीं !
*
खेतन ते भागीं, पनघट से भगि आईं, घाटन से दौरी धुबिनियाँ,
गोरस बहिल, ऐसी लुढ़की मटकिया तौ हूँ न रुकली बवरिया.
दौरी भड़भूँजी, मालिन, कुम्हारिन ,बढ़नी उछारि कामवारी,
गौरा लुटाइन सुहाग दोउ हाथन, लूटैं जगत के नारी !
*
ऊँची अटारिन खबर भइली, साज साजै लागीं घरनियाँ,
करिके सिंगार,घर-आँगन अगोरे तक,बचली फकत एक हँडिया.
चुटकी भरि गौरा उनहिन को दिहला, 'एतना रे भाग तुम्हारा,
दौरि-दौरि लूटि-लूटि लै गईं लुगइयाँ, जिनके सिंगार न पटारा !
*
' एही चुटकिया जनम भर सहेजो, मँहगा सुहाग का सिंदुरवा.
तन-मन में पूरो, अइसल सँवारो रंग जाये सारी उमरिया !'
गिनती की चुरियाँ,बिछिया,महावर,सिंदुरा,सहेजें कुलीना ,
गौरा की किरपा कमहारिन पे तिनको सुहाग नित नवीना!
*
भुरजी, कुम्हरिन ते माँगे #दुआरे जाइ , आँचल पसारि गुहरावें ,
मंगल बियाह-काज इन बिन न पुरवै, कन्या सुहाग-भाग पावे .
गौरा का सेंदुर अजर-अमर भइला, उन जइस को बड़भागिन रे,
इनही से पाये सुहाग-सुख-दूध-पूत, तीनिउँ जगत की वासिन रे !
*
( $ जाँचन= याचना करना ,माँगना .
# यह एक रिवाज़ है कि विवाह से पहले स्त्रियाँ सुहाग की याचना करने भड़भूँजिन , कुम्हरिन आदि के पास जाती हैं , वही कन्या को चढ़ाया जाता है .).
*
वाह!! जर्जर होती परम्पराएं और लुप्तप्राय रिवाजों के बीच यह एक सांस्कृतिक दस्तावेज़ की तरह है। मुग्ध हूँ माँ!!
जवाब देंहटाएंगौरा का सुहाग जैसे अमर है वैसे ही अमर है उसकी हर गाथा..लोक परम्परा ने जिसे जीवित रखा है..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआंचलिक महक और लोक परम्परा का जीता जागता फलसफा काव्यात्मक भव्यता के साथ ... नमन है आपकी लेखनी को हर बार ...
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट काव्य रचना , बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंउमदा प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंगौरा का सुहाग और सकी हर गाथा अमर है ...... शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंलोकभाषा ने गौरा के सुहाग गीत को भव्य और मधुरतर बना दिया है ।
जवाब देंहटाएंनिराली सांस्कृतिक छवि और सरसता मन पर छा जाती है । लोकभाषा
पर प्रतिभा जी के पूर्ण अधिकार को नमन । सुन्दर प्रस्तुति !!
bahut sundar rachna...
जवाब देंहटाएंThank you sir. Its really nice and I am enjoing to read your blog. I am a regular visitor of your blog.
जवाब देंहटाएंOnline GK Test