ओ, सुरभि -चन्दना,
उल्लास की लहर सी
आ गई तू !
*
मेरे मौन पड़े प्रहरों को मुखर करने ,
दूध के टूटे दाँतों के अंतराल से अनायास झरती
हँसी की उजास बिखेरती ,
सुरभि-चन्दना ,
परी- सी , आ गई तू !
*
देख रही थी मैं खिड़की से बाहर -
तप्त ,रिक्त आकाश को ,
शीतल पुरवा के झोंके सी छा गई तू ,
सरस फुहार -सी झरने!
उत्सुक चितवन ले ,
आ गई तू !
*
चुप पड़े कमरे बोल उठे ,
अँगड़ाई ले जाग उठे कोने ,
खिड़कियाँ कौतुक से विहँस उठीं ,
कौतूहल भरे दरवाज़े झाँकने लगे अन्दर की ओर ,
ताज़गी भरी साँसें डोल गईं सारे घर में .
आ गई तू !
*
सहज स्नेह का विश्वास ले ,
मुझे गौरवान्वित करने !
इस शान्त -प्रहर में ,
उज्ज्वल रेखाओं की राँगोली रचने ,
रीते आँगन में !
उत्सव की गंध समाये,
अपने आप चलकर ,
आ गई तू !
*
ओ सुरभि-चन्दना, परी सी
आ गई तू !
*
(रिटायरमेंट के बाद लिखी गई थी)
देख रही थी मैं खिड़की से बाहर -
तप्त ,रिक्त आकाश को ,
शीतल पुरवा के झोंके सी छा गई तू ,
सरस फुहार -सी झरने!
उत्सुक चितवन ले ,
आ गई तू !
*
चुप पड़े कमरे बोल उठे ,
अँगड़ाई ले जाग उठे कोने ,
खिड़कियाँ कौतुक से विहँस उठीं ,
कौतूहल भरे दरवाज़े झाँकने लगे अन्दर की ओर ,
ताज़गी भरी साँसें डोल गईं सारे घर में .
आ गई तू !
*
सहज स्नेह का विश्वास ले ,
मुझे गौरवान्वित करने !
इस शान्त -प्रहर में ,
उज्ज्वल रेखाओं की राँगोली रचने ,
रीते आँगन में !
उत्सव की गंध समाये,
अपने आप चलकर ,
आ गई तू !
*
ओ सुरभि-चन्दना, परी सी
आ गई तू !
*
(रिटायरमेंट के बाद लिखी गई थी)
आपकी लिखी रचना बुधवार 29 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबच्चों के आने से घर भर में जो उल्लास छा जाता है..ऊर्जा का संचार हो जाता है..उसका मनोहारी चित्रण...सुरभि चन्दना को हमारा भी स्नेह..
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है :)
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले
नयी पोस्ट@श्री रामदरश मिश्र जी की एक कविता/कंचनलता चतुर्वेदी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बुधवार- 29/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 40 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
सुरभि चंदना के शुभागमन की खुशबू यहाँ तक महसूस कर पा रही हूँ आपकी रचना के माध्यम से ! अनन्य स्नेह की अनुपम अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर मनोहर राग सी कोमल रचना।
जवाब देंहटाएंबच्चे तो नया उलास और अंड ले कर आते हैं ... खुशियाँ उनके दम पर अपने आप चली आती हैं ... चित्रों के माध्यम से आपका स्नेह छलक रहा है ...
जवाब देंहटाएंजहाँ बचपन है वहां खुशियों का संसार है...बहुत सुन्दर स्नेहमयी प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, स्नेह लिए मर्मस्पर्शी भाव हैं
जवाब देंहटाएंBacche ke aane ka harsh shabdo se antas me utar raha hai...lajawaab !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...सीधा दिल से
जवाब देंहटाएंवात्सल्य की अति सुकुमार एवं सुललित अभिव्यक्ति मन पर छा गई ।
जवाब देंहटाएंइसी प्रसंग में मुझे अपनी एक कविता के शब्द याद आ गए ।
" नन्हीं सी कली एक, खिली मेरी बगिया में । ख़ुशबू सी फैल गई, चुपके से बगिया में ।"
सुंदरम मनोहरं कोमल भावनाओं से संसिक्त रचना।
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंkitne lucky hain wo log jinke aagaman par itni sunder kavita likhi jaati hai. :")
kavita bahuuut bahuut pyaari hai..aur photos ne char chand laga diye......wowww...kash main aapki Surbhai-Chandana hoti...!! :""")
Aap bahut hi achchha likhte hai ,vatsalya prem ki adbhut jhalak .
जवाब देंहटाएंसुन्दर स्नेहमयी प्रस्तुति
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