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आकाश से धरती तक
पिघली चाँदी का ज्वार ,
तरल मोती बिखरे बन फेन-स्फार .
स्निग्ध कान्ति से दीप्त दिशायें ,.
तरंगायित पारावार !
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ऊपर लुढ़क पड़ा जो, अमृत घट
सारी रात बहेगी पीयूष धार
मुग्ध पर्वत निर्निमेष ,
मगन दिशायें अवाक्
आकंठ तृप्त होंतीं वनस्पतियाँ !
छायी रहे भोर तक.
यह दुर्लभ स्वप्निल माया ,
खुली रहे जादू की पिटारी
रात्रि का निबिड़ रहस्य लोक .
*
मत जलाओं बिजली के बल्ब,
वह तीखी -तप्त रोशनी
दृष्टि को चौंधिया ,
पी डालेगी सारा माधुर्य .
शीतल ज्योत्स्ना को धकेल ,
उतार फेंकेगी सारे मोहक आवरण ,
उघाड़ कर रख देगी रुक्ष संजाल !
*
बिजली मत जलाना आज रात ,
चौंक कर पलट जायेगी चाँदनी
उच्छिन्न कर आनन्द लोक !
डूबे रहें अविरल ,
रजत प्रवाह में,
लय- लीन हो ,
शरद पूनम की
अतीन्द्रिय रम्यता में !
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बहुत गहरे भावों को अभिव्यक्त किया है आपने इन पंक्तियों में .....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव भरे है !
जवाब देंहटाएंपूनम के चाँद सा चमकता कविता का भाव।
जवाब देंहटाएंबिजली मत जलाना आज रात ,
जवाब देंहटाएंचौंक कर पलट जायेगी चाँदनी
वाह .. बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर भाव समन्वय्।
जवाब देंहटाएंशरद पूर्णिमा की रात चाँद सुन्दरतम रूप में होता है. शरद के चाँद का सुन्दर चित्रण किया है.. बहुत बढ़िया.बहुत रोमांटिक .
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना शरद पूर्णिमा को समर्पित !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
"आकाश से पृथ्वी तक,पिघली चाँदी का ज्वार....तरंगायित पारावार"
जवाब देंहटाएंशरद-पूर्णिमा का मनोमुग्धकारी दृष्य आँखों के समक्ष साकार हो गया,साथ ही मन पर छा गया।अद्भुत-अभिव्यक्ति के लिये साधुवाद!!
इस बार की शरद पूर्णिमा विशिष्ट थी, ३० सालों बाद आई थी। चन्द्रमा की शीतलता से संतृप्त खीर विशिष्ट गुणों से युक्त हुयी।
जवाब देंहटाएंबहुत ज़माने बाद इस तरह की सुन्दर भाषा का प्रवाह देखने और पढने को मिला ......सादर
जवाब देंहटाएंमत जलाओं बिजली के बल्ब,
जवाब देंहटाएंवह तीखी -तप्त रोशनी
दृष्टि को चौंधिया ,
पी डालेगी सारा माधुर्य .
शीतल ज्योत्स्ना को धकेल ,
उतार फेंकेगी सारे मोहक आवरण ,
उघाड़ कर रख देगी रुक्ष संजाल !
बहुत बढ़िया...
मुग्धकारी वर्णन!
जवाब देंहटाएंअनुपम!
सुन्दरतम रचना, बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें /