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नयन अनायास भर आते हैं कभी,
यों ही बैठे बैठे!
नहीं ,
कोई दुख नहीं ,
कोई हताशा नहीं ,
शिकायत भी किसी से नहीं कोई.
क्रोध ? उसका सवाल ही नहीं उठता .
जाने क्यों बूँदे झर पड़ती है ,
बस ,यों ही चुपचाप बैठे .
कारण कुछ नहीं !
मन ही तो है!!
यों ही उमड़ पड़े कभी,
कभी बादल कभी धूप
कहाँ तक रहे बस में !
जाने दो !
मन को मन ही रहने दो ,
जीवन यों ही चलता है
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जरूरी भी है इस तरह बरस लेना नैनो का कभी कभी अनायास ही बेमौसम |
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंसप्रेम प्रणाम
सादर।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ मई २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आभारी हूँ श्वेता जी,यह रचना चुनने के लिए .
हटाएंजीवन यों ही चलता रहे
जवाब देंहटाएंसोचों में
जवाब देंहटाएंचलता रहता है बवंडर
बहुत कुछ
रहता है मन के अंदर
भीगा सा मन लिए
यूँ ही अनायास
झर जाती हैं आँखे ।
मन को मन ही रहने दो .... भावपूर्ण अभिव्यक्ति
अंतर्मन, अंतर्चेतना में कभी-कभार कुछ संवेदनशीलता की बूँदों को समेटे सृजनशीलता के बादल घुमड़ने लगते हैं, तभी हृदय-ताप उन बूँदों को संघनित कर जाते हैं .. शायद ...
जवाब देंहटाएंअकारण तो कुछ भी कहाँ होता है।हाँ मन के मन की समझने का मन करे तब न...
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन।
जीवन यूं ही चलता रहता है...
जवाब देंहटाएंमन जब नवनीत बन जाता है तब जरा से नेह की तपन से पिघल जाता है
जवाब देंहटाएंबात तो ठीक ही कही आपने लेकिन वजह होती तो है चाहे उस वक़्त समझ मैं न आए।
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