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बुधवार, 17 मई 2023

अनायास -

 *

नयन अनायास भर आते हैं कभी,

 यों ही  बैठे बैठे!

नहीं ,

कोई दुख नहीं ,

कोई हताशा नहीं ,

शिकायत भी किसी से नहीं कोई.

क्रोध ? उसका सवाल ही नहीं उठता .


जाने क्यों  बूँदे झर पड़ती है ,

बस ,यों ही चुपचाप बैठे .

कारण कुछ नहीं !


मन ही तो है!!

यों ही उमड़ पड़े कभी,

कभी बादल कभी धूप 

कहाँ तक रहे बस में !


जाने दो !

मन को मन ही रहने दो ,

जीवन यों ही चलता है 

**


शनिवार, 6 मई 2023

श्री गणपति-गौरा को अर्पित !

*

पधारो श्री गणपति मोरे अँगना ,

पग धारो माँ गौरा, हमारे अँगना .

तुम्हरी कृपा सों मंगल कारज,चन्दन चौकी विराजो अंगना !

लाई गंगाजल सोने के कलसा ,चुन-चुन बेला चमिलिया के फुलवा ,

होवे कुलचार हमारे अँगना !

मंगल मिलि सौभागिनि गावें, सखि मिलि मोतिन चौक पुरावें .

बाजे  ढोलक-मँजीरा, हमारे अँगना .

गणपति रिधि-सिधि संग लै अइयो ,लाभ-सुभहिं  हँकार बुलइयो  !

विहरैं दोऊ आवैें  हमार भवना  .

बाधा-विघन दूरि करि डारौ, गणपति सब विधि काज सँवारो.

सब विधि हम भए , तुम्हारी सरना ! 

सब सुख पावैं आरुषि-केतन सफल सारथक होवै जीवन 

करो पूरन कामना, माँ पुरणा !

गौरा-गणेश कृपालु भए रे, रिधि-सिधि सब ही काज निबेरे .

सजे मंगल साज , हमारे अँगना !

*



शनिवार, 25 मार्च 2023

एक दिन...

 


एक दिन 

एक दिन अति शान्त मन ,
मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास !
*
और, विचलित न हो जब थिर हो सकूँ`
मौसमों से दोस्ती के बीज फिर से बो सकूँ
अभी थोड़ा भ्रम बचा ही रह गया होगा ,
उबर कर मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास !
एक दिन अति सहज,आरोपण हटाकर .चली आऊंगी तुम्हारे पास
*
अभी राहें कहाँ चल कर पास आने को
रीति-नीति सभी निभाने को पड़ी हैं ,
निर्णयों में देर ही होती चली जाती,
और भी कठिनाइयाँ आकर अड़ी हैं ,
अभी कहाँ निवृत्ति मेरी ,शेष हैं कुछ ऋण चुकाने को
एक दिन जब चुप न रह कर बहूँ निर्झऱ सी बिना आयास
*
मत बुलाना ,फिर कहीं
कोई विवशता टेर लेगी
टेरना मत अभी
द्विविधा लौट कर फिर घेर लेगी
रस्ते से बुला ले कोई रुकावट कहीं ,फिर जाऊँ वहीं चुपचाप
दीप की कँपती हुई लौ जल सके निर्वात ,
तभी आऊँगी तुम्हारे पास
*
एक दिन सबसे उबर लूँ ,सिर चढ़े जो दोष
उसी दिन ऐसा लगेगा अब न कोई टोक ,
बीत जाये यह विषम घड़ियाँ बड़ी हैं
तपन औ', विश्रान्ति शीतल हो कि जब अनयास .
*
कुछ समझना रह गया होगा .
कहीं कच्चापन बचा होगा .
पार हो जायें सभी व्यवधान ,
पूर्ण अपने स्वयं का संधान ,
एक दिन आँसू जमे जब,
पिघल-गल बह जायँ अपने आप !
एक दिन अति स्निग्ध औ'निष्पाप
चली आऊंगी तुम्हारे पास .
*

देह के , मन के अभी तो शेष हैं घेरे
यहाँ के व्यवहार के
बाकी अभी फेरे
कामना के साथ कितने जाल
घेरते बन व्याल .
नृत्य सी लालित्यमय बन जाय हर पदचाप,
तभी आऊंगी तुम्हारे पास
*
(पूर्व लिखित)

मंगलवार, 17 जनवरी 2023

एक बरस बीत गया,

 *

एक बरस बीत गया,

जीवन-घट जल अधिकांश बीत, रीत गया 

पहुँचे सभी को प्रणाम और जुहार विनत ,     

बोले-अनवोले मीत,पांथ-पथिक संग-नित,            ,

देखे-अनदेखे संग चलते मुखर-मौन भले 

उन सब को मेरा हृदय से प्रेम-भाव मिले,

कह न सकूँ जो भी पर मन तो भरा आता है 

सबसे जुड़ा रास्ते का अनकहा-सा नाता है .

उसके ही बल पर कभी मै बोलती रही 

अपने को, कभी और को भी तोलती रही 

 *

कोई जो कहता  कान खोल  सुन लेती हूँ 

 बहुतेरी बार कुछ कहे बिन गुन लेती हूँ 

हम सब सुदूर कहीं यों ही  बह जायेंगे /

पतझर के पत्तों से, कभी न साथ आएँगे! 

कहा-सुना भला बुरा यहीं छूट जाएगा 

समय के साथ मीत, सभी बीत जाएगा!

हाथ जोड़ मेरी इस  विनती का मान धरें

मुझसे दुख पहुँचा हो,, कृपया, क्षमादान करें !