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गुरुवार, 27 अक्टूबर 2022

शत-शत वन्दन-

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शत-शत वन्दन प्रभु हे,चित्रगुप्त त्राता,

विधि के मानस-पुत्र, कर्मगति निर्णायक,

                  अवधपुरी में प्रकट धर्महरि विख्याता!

 कर्म-विपाक सृष्टि का निर्भर प्रभु, तुम पर  

काल-पृष्ठ  पर अंकित  करते हस्ताक्षर ,,

 रूप-स्वरूप,विजय,यश मति का सम्वर्तन,

सुर-नर मुनि कर रहे तुम्हारा अभिनन्दन !

            शुभ संस्कार प्रदान करो,हर लो जड़ता!.

 राम पधारे स्वयम् धर्महरि के मन्दिर ,

क्षमा-माँगने गुरु वशिष्ठ के सँग सादर ,

देव, कृतार्थ करो हम पर हो दृष्टि कृपा,

न्याय-व्यवस्था धरो, क्षमा दो हे मतिधर!

          नमन तुम्हें शत कोटि नमन हे ,प्रभु त्राता!

द्युतिमय श्यामल देह दिव्यता से दीपित

तत्पर द्वादश पुत्र मातृद्वय पोषित नित 

 कुल-भूषण हों देव तुम्हारी संततियाँ ,

तिलक मनुजता के बन पावें शुभ गतियाँ 

          मसिधर-असिधर प्रभुवर तुम कर्ता-धर्ता 

प्रभु,आशीष तुम्हारा हम पर सतत रहे ,. 

विद्या विनय नीतिमय जीवन राह रहे 

कभी न  हो दूषित कुतर्क रचना मन में ,

सहज-सरल श्रद्धामय मति हो जन-मन में.

         सन्मति ,शुभगति दो प्रभु, तुम ही सम्वर्ता!

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10 टिप्‍पणियां:

  1. भाईदूज के अवसर पर चित्रगुप्त देव की सुंदर वंदना, भारत की कायस्थ जाति परंपरा का स्रोत हैं इनकी संततियाँ।

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  2. वाह वाह यह तो याद रखने लायक स्तुति है भगवान चित्रगुप्त की. बहुत खूब आदरणीया

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. बहुत सुंदर प्रार्थना
    जय श्री चित्रगुप्त भगवान

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  5. चित्रगुप्त जी की ऐसी आरती प्रथम बार कहीं पढ़ने को मिली है। अद्भुत रचना। अद्वितीय !

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