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रविवार, 22 मार्च 2020

कहाँ मिला इंसाफ़

कहाँ मिला ,
इंसाफ़,आधा-अधूरा रहा .
छूट गया 
सबसे पातकी गुनहगार, 
 उढ़ा दी पापियों ने  
भेड़िये को भेड़ की खाल,
 और छुट्टा छोड़ दिया -
 फिर-फिर घात लगाने के लिए.

वीभत्स  पशु,दाँत निपोरता  
मौका तक रहा होगा . 
खोजो ,कहाँ है 
खदेड़ कर सामने लाओ.


सब से गहरा कलंक ,
इंसानियत पर
 काली छाया डाले
जाने कब तक.
मिटा दो वह  पाप का  अंक,
कि मानवता  सिर उठा कर जी सके!

ओ माँ ,
तुम जो क्षण-क्षण साक्षी बन , 
भोगती रहीं मरणान्तक पीड़ा,
उसके साथ,
तुम्हारे  अभिशाप से त्रस्त ,
नारीत्व-भंजन का  महापापी,
कुकर्म-बोध पाले,
पल-पल दहता  
अनन्त काल तड़पे,
वह जघन्य जीव 
किसी ठौर त्राण न पाए !
*
- प्रतिभा.


7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 23 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. संवेदनशील विषय पर इस लाजवाब सृजन के निशब्द हूँ । चिन्तनपरक सृजन मैम !

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  3. एक क्रोध ... एक क्षोभ जो जायज है ...
    क्यों और क्यों हो रहा ये सब ... क्या मानवता कहाँ जा राही है ...
    मूल्यों के बीच इन्साफ क्यों नहीं होता ...
    नमन है आपकी कलम को ...

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  4. समाज और न्याय व्यवस्था को आईना दिखाती कविता...

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