विसर्जन के फूल
*
फूल उतराते रहे दूर तक,
महासागर के अथाह जल में.
समा गये संचित अवशेष
कलश से बिखर हवाओं से टकराते,
सर्पिल जल-जाल में
विलीन हो गए .
*
अपार सिंधु की
उठती-गिरती लहरों में
ओर- छोरहीन,
अनर्गल पलों में परिणत,
बिंबित होते बरस- बरस,
जैसे अनायास पलटने लगें
एल्बम के पृष्ठ.
*
समर्पित फूल
जल के वर्तुलों में
चक्कर खाते, थरथराते, थमते
लौट आने के उपक्रम में
फिर-फिर पलटते
उमड़ती लहरों के साथ.
अनजान तट बह गए.
*
नाव की पहुँच ,
आगे बस पटाक्षेप.
अरूप-अनाम निष्क्रम
गहन प्रशान्त के अतल
अपरम्पार में,
शेष का विसर्जन .
अराल सिन्धु-छोर ,
आगे कुछ नहीं !
*
फूल उतराते रहे दूर तक,
महासागर के अथाह जल में.
समा गये संचित अवशेष
कलश से बिखर हवाओं से टकराते,
सर्पिल जल-जाल में
विलीन हो गए .
*
अपार सिंधु की
उठती-गिरती लहरों में
ओर- छोरहीन,
अनर्गल पलों में परिणत,
बिंबित होते बरस- बरस,
जैसे अनायास पलटने लगें
एल्बम के पृष्ठ.
*
समर्पित फूल
जल के वर्तुलों में
चक्कर खाते, थरथराते, थमते
लौट आने के उपक्रम में
फिर-फिर पलटते
उमड़ती लहरों के साथ.
अनजान तट बह गए.
*
नाव की पहुँच ,
आगे बस पटाक्षेप.
अरूप-अनाम निष्क्रम
गहन प्रशान्त के अतल
अपरम्पार में,
शेष का विसर्जन .
अराल सिन्धु-छोर ,
आगे कुछ नहीं !
*
बहुत सुन्दर। सटीक।
जवाब देंहटाएंबेहद सजीव चित्रण...विसर्जन के फूलों का यही तो हश्र होना है..जीवन भी ऐसा ही है अभी जो आँखें प्रेम लुटाती हैं कुछ पल बाद मुंद जाएँगी जब,विलीन हो जायेगा उनका प्रकाश किसी महाप्रकाश में..
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-02-2019) को "बहता शीतल नीर" (चर्चा अंक-3239) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार,आ.शास्त्री जी!
हटाएंबहुत भावमयी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कवि प्रदीप और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ हर्षवर्धन जी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंविसर्जन के कुछ फूलों के सहारे मन में दबी भावनाओं का विसर्जन ... लौटने पलटने के प्रयास के साथ सिन्धु छोर पर अंत आशेष ...
जवाब देंहटाएंकितना कुछ कह दिया है इन लघु रचनाओं के माध्यम से ... अनंत में मिल के तो अंततः सब एकाकार हो जाना है ...