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सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

मौन की आरती

*
प्रभु के सम्मुख आराधना के तन्मय क्षणों में मानस  जब  दिव्य अतीन्द्रियता में लीन हो जाय, उन भावमय क्षणों की  सहज अभिव्यक्ति है यह कविता - ' मौन की आरती '.
रचनाकार के शब्दों में  - ''वृंदावन में बाँके बिहारी जी को निहारते  भान हुआ कि यहाँ  उपस्थित हर व्यक्ति किसी संताप से ग्रस्त हो प्रभु की शरण में आया है और अंतस् की आर्त-वेदना प्रभु को अर्पित कर रहा है .उन विभोर क्षणों में जो अनुभव पाया वह अनायास ही यहाँ व्यक्त हो उठा. ''

जीवन डाक्टर का और भावन कवि का -लोगों के कष्टों का उपचार  दवाएं दे-दे कर करती होंगी,  अंतर में स्थित एक संवेदनशील रचनाकार का अनुभव मुझे निरंतर होता रहा है. यहीं ब्लाग-जगत में  चलते-फिरते  टकरा जाती  हैं . उनकी इस मौलिक सृजन-क्षमता का जो सुख मैंने पाया ,आज आप सब को बाँटने से स्वयं को रोक नहीं पा रही . प्रस्तुत है -


मौन की आरती 
*
मंदिर के
प्रांगण में,
निहारते हुए
प्रभु का
अप्रतिम सौन्दर्य
अपलक दृष्टि से..

जुड़े हुए

हाथों से
थामे
मन की
एक थाली..

रखे हुए

उसमे श्रद्धा और
अटूट विश्वास के
फूल...

 प्रज्ज्वलित किये हुए

नैनों के दो
दीप...

कपोलों की

दूर्वा से
छिड़कते हुए
अश्रु निर्झर के
जल-कण...

तकते थे

दूर खड़े
अधरों से
स्तब्ध शब्द..
ह्रदय के
इस मौन की
आरती.............
- ?
( नामोल्लेख पर रोक है , अनुमान पर नहीं .)
*

13 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक अभिव्यक्ति-
    आभार दीदी-

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  2. यह तो सर्वोत्कृष्ट मानस पूजा है l इससे बढ़िया पूजा तो और कुछ हो ही नहीं सकता बाकी तो सब आडम्बर !
    New post चुनाव चक्रम !
    New post शब्द और ईश्वर !!!

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  3. कविता को साहित्य की दृष्टि से देखें तो शब्दों का इतना सुन्दर चयन और इतनी सुन्दर उपमाएँ कि मुझे कभी कभी गीता में कहे प्रभु के वे वचन याद हो आते हैं जिसमें उन्होंने मनुष्य के स्वधर्म की चर्चा की है... विश्वास नहीं होता कि यह पंक्तियाँ एक चिकित्सक ने लिखी हैं... एक चिकितस्क का हृदय यदि इसी कोमलता का सृजन करता है तो अवश्य ही वृन्दावन विहारी की छवि में उन्हीं की छवि दिखेगी.. प्रभु जगन्नियंता है, माता नौ महीने अन्धकार में जीवन देने वाली और चिकित्सक उस जीवन को सम्भालने और बनाने वाला.
    नाम का उल्लेख भले न हो, मैं अनुमान न भी लगा पाऊँ, फिर भी उनके चरणॉं में मेरा सादर प्रणाम है! यदि उनकी ऐसी प्रार्थना है तो उन्हें किसी हिपोक्रेटिक शपथ की आवश्यकता नहीं!!

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  4. बाँके बिहारी की आँखों में सम्मोहन है, पहली बार देखा था तो मैं भी मुग्ध हो गया था।

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  5. शकुन्तला बहादुर25 फ़रवरी 2014 को 8:04 pm बजे

    जिस प्रभुभक्ति की तल्लीनता के क्षणों में अन्तर्मन की आस्था को इस
    सुललित कविता में अभिव्यक्त किया गया है , इसे पढ़ते पर मैं भी वैसी ही
    तन्मयता में डूब गई । मेरा अनुमान है कि ये डाॅ. तरु की रचना हो सकती है कवयित्री को अनेकानेक साधुवाद !!

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  6. अरे शकुन्तला जी , आप तो ख़त का मजमूँ जान लेती हैं लिफ़ाफ़ा देख कर ! अब मैं क्या कहूँ ?
    तरु, मैंने तुम्हारा नाम नहीं लिया ,पर ये तुमसे अच्छी तरह परिचित लगती हैं.
    अस्तु ,अब सबका आभार प्रकट करने की ड्यूटी से मुझे छुट्टी मिली . देखो न, यहाँ डाक्टरों के कितने अच्छे-अच्छे ब्लाग्ज़ हैं ,मेरी सुनो तो अब अपना भी बना ही डालो .

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  7. सुंदर शब्दों से भरी खूबसूरत रचना।।।

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  8. मौन में ही उससे संवाद सम्भव है...

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  9. आभार एक सुंदर रचना को साझा करने के लिये ।

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  10. :'''-) mera saubhagya jo pratibha ji aapne rachna ko blog per sthaan diya.ye to ek swapn jaisa hai mer liye.

    @ all.......
    behad shukrguzaar hoon sabhi aadarneeya pathakon ki....comments padh ke simat gayi khud me hi...sakuchahat ho rahi hai likhne me....lag raha hai.chhoti bachchi ban jaaun aur maa ke aanchal me chhup jaaun...aur kuch bhi na kahoon..:D
    anyways..
    ek zaruri baat kahe bina sab adhura rahega wo ye ki
    is kavita me meri aadarneeya maa tulya sangeeta swaroop ji ki bhi hissedaari hai...''kapolon kee doorva'' ke sthan par maine ''ghaas'' likha tha pehle..jab community pe post ki...mumma ka phone mere paas aaya...k use ''doorva'' likh do taru..aur maine doorva kiya.wo na kehtin to shayad ghaas hi rehta wahan par..:) (naman unhe unki drishti unke badappan ko.)
    kavita sulalit banane ke liye abhaar mumma aapka..:)

    @ all...ek baar fir nat sheesh ke sath aabhaar aap sabhi prabuddhjanon ka.aabhaar bihaariji ko bhi.main jo nai karna chahti wahi wo karwa hi dete :-|:''-)

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  11. बहुत सुन्दर । तरु की लेखनी से परिचय है । मेरा प्यार और आशीर्वाद उसको । आपने इसे यहाँ साझा किया आभार ।

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