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रविवार, 12 दिसंबर 2010

कवि से -

*

तिमिर स्तर कर पार ,मनमय कोष भास्वर

दीप्तिमय हर शब्द,ज्योतित पंक्तियाँ धर ,

कवि, तुम्हारे छंद, आरण्यक-स्वरों में

उदित ऊषाकाल के ऊर्जिल किरण- शर !

*

अक्षरित हो भू- पटल पर उभर आएँ

गमक भर-भऱ शिखर ,गुंजन द्रोणियों में

कवि ,तुम्हारे स्वरों से आश्वस्ति पा,

दुष्काल को भी अब लगेगें स्वप्न आने ,

हो गए हैं शब्द जो दिक्-काल व्यापी,

अजित अपरामेय अनुप्रेरित अनश्वर !

*

पहुँच पाये जब जहाँ तक यह सँदेशा

अनसुने कब तक रहेंगे ये प्रबोधन !

और कब तक नयन मीलित ही रहेंगे,

स्वच्छ निर्मल कर धरा जो सत्य-दर्पण

चेत को झकझोरते वे मंत्र फूँको ,

आज वैतालिक, कि जग जाए चराचर .

*

15 टिप्‍पणियां:

  1. उस दिन कहने की इच्छा थी कि इसे आगे लिखिए..
    धन्यवाद जो आपने आगे लिखा...

    "और कब तक नयन मीलित ही रहेंगे,
    स्वच्छ निर्मल कर धरा जो सत्य-दर्पण
    चेत को झकझोरते वे मंत्र फूँको ,
    आज वैतालिक, कि जग जाए चराचर. "

    साधु!

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  2. पहुँच पाये जब जहाँ तक यह सँदेशा

    अनसुने कब तक रहेंगे ये प्रबोधन !

    और कब तक नयन मीलित ही रहेंगे,

    स्वच्छ निर्मल कर धरा जो सत्य-दर्पण


    यह कविता पढ़ सच ही लग रहा है की कवि की कलम में बहुत ताकत होती है ...बहुत अच्छी रचना ..

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  3. अहा! मन आह्लादित हो गया। एक बार फिर आपकी कविता पढकर छायावादे कवि स्मरण हो आए।

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  4. पढ़कर मन उतर गया छायावाद के घाटों में।

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  5. सुंदर रचना के लिए साधुवाद! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!

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  6. आर्ष शब्दावली आकर्षित करती है ....निश्चित ही प्रारम्भ हो सकेगा एक नयी संसृति का सृजन कवि के छन्द आरण्यक स्वरॊं से ...

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  7. आदरणीय गिरिजा जी,
    कविता के हर शब्द से उसके गहन भाव संप्रेषित हो रहे हैं !
    बहुत ही सुन्दर रचना !
    साभार ,
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  8. मर्मज्ञ जी ,
    यह टिप्पणी आप भूल से यहाँ लिख गए हैं ,जिसके लिए है कृपया उसके पास भेज दें .

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  9. जागरूक करती हुई उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार प्रतिभा जी !

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  10. आपकी कविता मुझे प्रसाद, पन्त, महादेवी, निराला एवं दिनकर का स्मरण करा गई। बहुत ही भावनात्मक.....छन्दबद्ध....प्रखर एवं हृदयानुरञ्जक कविता है।

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  11. आदरणीय प्रतिभा जी,
    मेरी टिप्पणी आप के ही लिए है बस नाम लिखने में न जाने कैसे गलती हो गयी !
    कृपया क्षमा करें !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  12. क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
    आशीषमय उजास से
    आलोकित हो जीवन की हर दिशा
    क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
    जीवन का हर पथ.

    आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

    सादर
    डोरोथी

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  13. aapke kalam ki takat ko naman pratibha di...:)
    ham to bahut chhote hain...isss kalakari me...aise sabdo visheshan sune tak nahi...
    achchha laga padh kar...:)

    ab barabar aaunga, kuchh seekhne...!
    nav varsh ki agrim subhkamnayen...

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  14. शकुन्तला बहादुर28 जनवरी 2011 को 8:57 pm बजे

    प्रतिभा जी,
    आपकी रचना ने याद दिला दी-
    "कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ,
    जिससे उथल पुथल मच जाए।"
    ओजपूर्ण प्रांजल भाषा में कवि के लिये आपका ये उद्बोधन अत्यन्त समीचीन एवं प्रभावी है। सुन्दर रचना के लिये बधाई!!

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