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रविवार, 1 सितंबर 2024

बीज - मंत्र .


शब्द बीज हैं!

बिखर जाते हैं,

जिस माटी में ,  

उगा देते हैं कुछ न कुछ.

संवेदित, ऊष्मोर्जित

रस पगा बीज कुलबुलाता

 फूट पड़ता , 

रचता नई सृष्टि के अंकन !

*

शब्द मंत्र हैं,
उच्चरित-गुञ्जित 
अंतराग्नि में आहुतियाँ देते
 चलता रहे जीवन-यज्ञ!
फिर-फिर हरियाये धरा.
जीवन-गंध बाँटे पवन
विश्व-मंगल और ,
सृष्टि का  नव-नवोन्मीलन!
*