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रविवार, 22 सितंबर 2019

लघु अंकन .


*
मु्क्त छंद सा जीवन ,
अपनी लय  में  लीन ,
तटों में बहता रहे स्वच्छंद .

न दोहा, न चौपाई - बद्ध कुंड हैं जल के.
कुंडलिया छप्पय? बिलकुल नहीं -
ये हैं फैले ताल ,
भरे हुए जहाँ के तहाँ ,
 वैसे के वैसे .

मैं ,धारा प्रवाह,
छंद - प्रास - मात्रा प्रतिबंध से मुक्त,
मनमाना बहती
तरल-सरल .
कहीं मन्द कहीं क्षिप्र चल,
ऊबड़-खाबड़  में क्षण भर थम 
वक्र हो सँभल ,
अपनी ही धुन में
उर्मिल स्वर भर
कूलों से बतियाती.

 अचानक सामने पा अगाध अपार,
 तटों की सीमा लाँघ,
उच्छल लहरें समेट
समाहित हो रहूँ ,
मैं, काल के  महाग्रंथ का
परम लघु अंकन  !





10 टिप्‍पणियां:

  1. मुक्त छन्द सा जीवन
    बस तटों का बन्धन :)

    सुन्दर।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 24 सितम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. उम्दा।
    इस "परम्" का जवाब नहीं मैम।


    पधारें अंदाजे-बयाँ कोई और

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-09-2019) को     "बदल गया है काल"  (चर्चा अंक- 3468)   पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. ये लघु अंक अगर मुक्त हो के बह सके तो अनेक निशाँ बनाता है ... पर किसी परिधि में जब बांध जाता है दम तोड़ देता है ... जीवन स्वछन्द ही अच्छा ...

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  6. निश्छल प्रवाह लिए सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  7. मैं ,धारा प्रवाह,
    छंद - प्रास - मात्रा प्रतिबंध से मुक्त,
    मनमाना बहती
    तरल-सरल .
    कहीं मन्द कहीं क्षिप्र चल,
    ऊबड़-खाबड़ में क्षण भर थम
    वक्र हो सँभल ,
    अपनी ही धुन में
    उर्मिल स्वर भर
    कूलों से बतियाती.
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब.....

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