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मंगलवार, 16 मई 2017

बस भी करो -


हे ,भगवान  !
तूने उसे माँ होने का वरदान दिया , 
अच्छा किया . 
सृष्टि का तारतम्य चला . 
तूने विशिष्ट बनाया  नारी को 
 यहीं से शुरू हो गया दोहन ,
दाँव चढ़ गया सारा जीवन . 
करती रही धर्म मान 
मातृत्व का निर्वहन. 
पलते-समर्थ होते पकड़ते अपनी राह . 
रह जाती ढलती - छीजती, 
फिर एक-एक दिन 
गिनती,काटती. 
नहीं, 
भूले  नहीं वे - 
साल में एक दिन नियत 
वंदना पूजा-परितोष का विधान . 
कवियों ने रच दिये एक से एक स्तुति गान . 
तान दिए महिमा के वितान. 
व्यक्ति का अवसान, 
मानवीय चोला हटा 
अतीन्द्रिय देवी प्रतिष्ठान. 
अरे, अब बस भी करो . 
भाषण और व्यवहार के आकाश -पाताल 
सम करो ,
बंद करो -  
देह-मनःमय जीवन 
अश्मित कर , 
भावों की बाढ़ का प्रदर्शन! 
हर साल गोदाम से निकाल 
अपनी गढ़ी मूरत का पूजन, 
ये भावुक आयोजन 
बंद करो ! 
हो सको संयत अगर - 
तमाशबीनों की भीड़ बन 
किसी नारी का अपवंचन 
बंद करो , 
मत रहो तटस्थ , 
हो सके तो दे दो वातावरण 
कि बेबस - विषण्ण न हो, 
नारी -मात्र ,जीवित है जब तक 
पा सके 
सहज-मानवी गरिमामय जीवन! 
-  


रविवार, 14 मई 2017

बेटी-माँ.


 बेटी ,माँ बनती है जब
समझ जाती है.
अब तक,माँ से सिर्फ पाती रही थी -
लाड़-चाव,रोक-टोक नेह के उपचार,
 विकस कर कली से फूल बन सके.
देखती  व्यवहार, जीने के  ढंग ,
माँ थोड़ी मीठी,थोड़ी खट्टी.
 समझदार हो जाती है बेटी ,
माँ बन कर .
बहुरूपिया है माँ ,कितने रूप धरती है,
 पढ़ लेती सबके मन .
माँ, तुम्हारा मन कहाँ रहा था लेकिन ?
जानने लगी हूँ तुम्हें, सचमुच ,
बेटी जब माँ बनती है,
समझ जाती है.
एक आँख से सोती है माँ,
पहरेदार,हमेशा तत्पर.
कुछ नहीं से कितना कुछ बनाती 
सारे रिश्ते ओढ़े चकरी सी नाचती ,
निश्चिन्त कहाँ थी माँ .
जब बेटी माँ बनती है
समझ जाती है -
कैसी होती है माँ .
-
- प्रतिभा.