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मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

घास हँसती है .

घास हँसती है .
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ओस की बूँदें बिछा राँगोलियाँ पूरीं ,हरित पट पर लिख दिये नव-रूप  के अंकन 
महकता चंदन लगा  पुलकित पराग धरे,  पूर  चुटकी से कहीं हल्दी कहीं  कुंकुंम
सूर्यमुखियों के बहुत लघु संस्करण हुए , छत्र साजे  पीतवर्णी पाँखुरी मंडल 
खिल उठे अनयास इस एकान्त की लय में ,प्रार्थना करते हुए -से वन्य ये शतदल 
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  धरा का आँचल धुला-सा नम हुआ रहता, बाँसुरी-सी भोर की  सरगम खनक जाती
 टार्च चमका पूर्व से आ झाँकता सूरज  वनस्पतियाँ कुनमुना कर  पलक झपकातीं
 यह लुनाई ,सुघरताई यह प्रणत मुद्रा लिख गई मृदु भावना  के व्यक्त पुष्पाक्षर 
चित्रकारी कर सजाया  रेशमी रंग ले , वाग्देवी के पधारें चरण  इस तल पर .
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धवल वसना दिव्यता का अवतरण क्षिति पर, किरण-किरण पराग स्वर्णिम ,शुभ्र कमलासन
घास का सौभाग्य,हर तृण पुलक से पूरित , हंस और मयूर उतरेंगे इसी आँगन .
रंगशाला खोल मधु-ऋतु कर रही सज्जा ,तिलक केशर का लगा कर निरखती अपलक 
फूल पग-पग पर बिछाये पाँवड़े रच कर ,पाग बाँधे द्वार पर  तैय्यार टेसू तक.
*दूर तक फैली हुई कोमल गलीचे सी , दूब अपनी धन्यता का भास करती है ,
घास हँसती है !
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5 टिप्‍पणियां:

  1. ऋतुओं के राजा वसंत का आगमन और वाग्देवी का पदार्पण ! सुंदर मनोहारी चित्रण !

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  2. बसंत का आह्वान जब जब होता है ... दिशा महकती है ...
    बहुत हीअनुपम दृश्यांकन ऋतुराज का ... बहुत शुभकामनाएँ ...

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  3. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Nice article with awesome explanation ..... Thanks for sharing this!! :) :)

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  4. बहुत सुन्दर शब्दचित्र मम्मी!! इसे कबित्त कह सकते हैं क्या?? इसी शैली में मैंने भी होली पर कुछ लिखा था! पोस्ट करूँगा! अभी तो मुग्ध हूँ, बस!!

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