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सोमवार, 7 जुलाई 2014

शब्द-दर्पण

*
वही बावन अक्षर .
गिनी-चुनी मात्राएँ और
थोड़े से विराम चिह्न .
शब्द भी  कोश में संचित,अर्थ सहित.
 सबके पास यही पूँजी.
*
आगे सब-कुछ भिन्न ,
 हाथ बदला कि -
व्यंजनों के स्वाद बदले ,

स्वरों के राग बदले.
वही चेत -
कितने  रूपों, कितने रंगों में,
कितने प्रसंगों में:
और सारा का सारा प्रभाव ,
एकदम भिन्न !
*
विषय को छोड़,
व्यक्ति को
लिखने लगती है भाषा.
सारे आवरण धरे रह जाते हैं .
वही शब्द, कुछ कहते
कुछ और कह जाते हैं ,
मनोजगत का सारा एकान्त ,
बिंबित कर ,
दर्पण बन जाते हैं !
*

11 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन से अनुभूत सारगर्भित एवं गहन रचना .....!!

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  2. सही कहा है आपने..शब्द वही पर अर्थ भी बदल जाते हैं सन्दर्भ भिन्न हो तो....पर मनोजगत अनेक होते हुए भी कहीं न कहीं एक होते हैं तभी तो पाठक को लगता है उसकी ही बात कही जा रही है...

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  3. वही अक्षर, वही अक्षरों के मेल से बने शब्द, वही शब्दकोश... लेकिन हर व्यक्ति की अपनी शब्दावलि होती है... कुछ शब्द तो ऐसे होते हैं कि प्यार से सहलाएँ तो गोद में बैठ जाते हैं, प्यार करें तो दुलारते हैं... शब्दों को सदा सम्मान दिया है मैंने और कम से कम आपकी इस कविता की कसौटी पर तो खरा उतरने की कोशिश की है मैंने हमेशा.

    बहुत पहले एक पोस्ट लिखी थी मैंने जिसमें यही बात कही थी कि प्रारम्भ में हम शब्दों को रचते हैं, लेकिन कालांतर में यही शब्द हमें रचने लगते हैं, तभी तो किसी के लिखे को कोई मीलों से पहचान लेता है और दूसरे के लेखन को देखते ही "उसकी छाप" बता देता है!

    माँ, आपकी कविताएँ/कथाएँ भी तो आपकी एक पहचान लिये होती हैं, जिसकी ख़ुशबू आपका नाम बिखेर जाती है!

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  4. अदभुद । जैसे रसोईये से खाने का स्वाद होता है :)

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  5. महसूस तो इसे हमने भी किया लेकिन लिखा आपने । बहुत सही सटीक । एक ही विषय पर कई कहानियाँ हैं लेकिन सब अलग हैं ।

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  6. गहरा अनुभव शब्दों में ढाल दिया आपने ...
    शब्द, अक्षर, वाही भाव लेकिन फिर भी अलग अलग प्रभाव ... आपकी विशिष्ट शैली को नमन ...

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  7. सच में, वही शब्द..पर अलग सोच, अलग भाव, अलग अंदाज़...सुंदर कविता :)

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  8. शब्द वही लेकिन उनको रचाने वाले की एक पहचान देते हैं । शब्द मन का दर्पण हप्ते हैं जो मन के भावों को अनायास ही उजागर कर जाते हैं ।

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  9. इस दर्पण में इतना निखार है कि अपनी ही सुंदरता और भी दमक उठती है तो भला कोई इसे प्रेम किये बगैर कैसे रह सकता है ?

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  10. शकुन्तला बहादुर16 जुलाई 2014 को 4:56 pm बजे

    अक्षर मिलकर शब्द बनें , और शब्द हैं सर्वसमर्थ ,
    विविध भाव के दर्पण बनते, समझें न असमर्थ ।
    शब्दों पर अधिकार बड़ा है , अपनी प्रतिभा जी का ,
    उनके मन का भाव सहज , पाठक के मन पर छाता ।।

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