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शुक्रवार, 9 मई 2014

कृतारथ कर दिया ओ माँ !

( उस परम- जननी ने  नारी जन्म  दे कर  जो 'माँ' बनने का गौरव  प्रदान किया -    कृतज्ञता -ज्ञापन हेतु 'विश्व-मातृ-दिवस' पर अपनी एक पूर्व  कविता  प्रस्तुत करने  से स्वयं को रोक नहीं पा रही हूँ. ) 
*
सृजन की माल का मनका बना कर जो ,
कि नारी तन मुझे देकर कृतारथ कर दिया ओ माँ !
*
सिरजती एक नूतन अस्ति अपने ही स्वयं में रच
इयत्ता स्वयं की संपूर्ण वितरित कर परं के हित
नए आयाम सीमित चेतना को दे दिए तुमने
विनश्वर देह को तुमने सकारथ कर दिया, ओ माँ !
*
बहुत लघु आत्म का घेरा कहीं विस्तृत बना तुमने
मरण को पार करता अनवरत क्रम, जो रचा तुमने
कि जो कण-कण बिखरता, विलय होता, नाश में मिलता,
नये चैतन्य का वाहन, पदारथ* कर दिया ओ माँ !
*
कि नारी तन मुझे देकर, कृतारथ कर दिया ओ माँ !
*
अमृतमय स्रोत जीवन का प्रवाहित कर दिया तन में,
लघुत्तम जीवधारी को जनम-अधिकार दे तुमने.
रहस्यों की गुहा में धर तुम्हीं साकार कर पाईं,
जगा कर बीज-मंत्रों को यथारथ कर दिया ,ओ माँ !
 *

- प्रतिभा.
(*पदारथ = मणि)

13 टिप्‍पणियां:

  1. माँ, आपकी कविता पर कुछ कहने की क्षमता नहीं मेरी...
    कि नारी तन मुझे देकर कृतारथ कर दिया ओ माँ!!
    और मैं यह मानकर कृतारथ अनुभव कर रहा हूँ कि मुझे जन्म देने वाली एक नारी है!!

    अद्भुत सन्योग है कि आज आपकी एक पुरानी कविता ब्लॉग बुलेटिन के लिये चुनी और आज यह प्रस्तुत है! प्रणाम!!

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  2. संसार चक्र है जिससे आलोकित और गतिमान , वह मणि माँ ने ही निर्मित की .
    सुन्दर भाव . माँ को नमन !

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  3. आज भावनाओं को शब्द देने की कोशिश भी नहीं कर रही हूँ।कृतार्थता प्रकटित हो रही है। ।

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  4. प्रतिभा जी बहुत प्यारी रचना .माँ का प्रेम तो अनमोल है .हर माँ को नमन ...बधाई

    भ्रमर ५

    भ्रमर ५

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  5. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. रचना को महसूस ही किया जा सकता है ... बेटी से ज्यादा माँ को मन को कौन समझ सकता है ... हर पंक्ति पावन श्रधा है माँ के चरणों में ...

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  7. तारीफ़ के लिये शब्द नहीं है।

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  8. बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  9. मैं कुछ कहने योग्य नहीं, माँ को कहने योग्य कोई कहाँ!

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  10. माँ के प्रति सच्ची कृतज्ञता कि हमें नारी के रूप में जन्म दिया । अद्भुत भाव ।

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