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शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

सूपनखा का जन्म -

*
 होली आई होली आई ,बड्डू जी ने भाँग चढ़ाई .
जा बैठे कुर्सी पर बड्डू,खाने लगे उठा कर लड्डू
मस्त हुए दस लड्डू खा कर लगे नाचने हथ उठा कर .
हँसने लगे अचानक यों ही ,बात हुई क्या बोला कोई .
*
लंका में तूफान उठा है ,हनूमान को नहीं पता है .
जीते राम, गए लंका में ,त्रिजटा पड़ी बड़ी शंका में ,
सबके पूरे हुए काम जी ,पर कुछ सोचो, अरे राम जी ,
सूपनखा अब कहाँ जायगी ,कैसे अपना घर बनायगी ?
*.
राम और लक्ष्मण जाते हैं उसका न्याय न कर पाते हैं
अब रावण भी नहीं यहाँ पर , किसके पास रहेगी जाकर .
चक्कर में पड़ गए राम जी ,उसका भी तो बने काम जी.
जुड़ी रहेगी राम-लखन से ,किन्तु काम अपने ही मन के ,
*
लक्ष्मण पुर का नाम लखनऊ,वही तुम्हारा बने धाम जू,
आधा नाम दूसरा होगा , कोई   राम   साध ही देगा
 ऐसा पहुँचा गुरु पाएगी, पर अनब्याही रह जाएगी  .
ठाठ करेगी ,राज करेगी ,मनमानी हर बात करेगी ,
*
हाथी-साथी साथ रहेंगे, लादे तेरा बोझ रहेंगे .
कलियुग में शासन की डोरी , तेरे हाथों थोरम-थोरी,
चाहे जितने ही युग बीतें ,मायाविन तेरी तरतूतें,
जुड़ी रहें माया से  माया ,सूपनखा का जनम सुनाया.
*
अब  वह धरती पर आई है ,अपनी  माया फैलाई है
इच्छा पूरी होय तुम्हारी ,पूरी कर दी जुम्मेदारी .
कुर्सी- माया जाय न जानी , बड्डू जी ने कही ज़बानी.
प्रकटी माया  राम धन्य हो ,सूपनखा कलि में प्रणम्य हो !
*

15 टिप्‍पणियां:

  1. क्या गजब का चित्रण है ..... नतमस्तक हूँ आपकी लेखनी पर .....

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  2. हमारा भी इस घोर कलि में बड्डू जी के साथ सुट्टा मारने का दिल हो रहा है..

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  3. बड्डू जी को सलाम :)
    क्या बात बताई है
    भाँग चढ़ आई है ।

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  4. आपकी बाकी रचनाओं से भिन्न, मगर कमाल की मारक रचना है. देश की वर्त्तमान में चल रही गतिविधियों की अच्छी खोजखबर ली है!!

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  5. सटीक व्यंग ... खरी है आपकी बोली :)

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  6. गज़ब गज़ब गज़ब ... पहली बार इस तरह की कोई रचना पढ़ी. मजा आ गया..

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  7. गज़ब ... कहाँ से कहाँ ले जाकर लीक पे ले आती हैं आप अपने काव्य को ... मज़ा आ गया ...

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  8. merko to samajh hi nai aayi :(:( poochh paachh ke aati hoon wapas se rachna pe..:'(

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