* राजा है बसंत, ऋतुराज नाम कहै देत, सारी ऋतुअन सों नज़राना धरावत है. सरद में सारदा को करन प्रनाम, एक माह पहिले ही आय आगमन जनावत है , * जाड़े की ठिठुरन को ठाकुर ठिराय कहत ,चौरहे सजाये सारे होरिका जरावन को, संयम को ढील दै जो भावै बकि लेहु, चाहे गारी में, चाहे कबीर अरु फागन सों, * होरी को हुरंग, जड़-जीव फगुनाय रहे , बिसरी मरजाद नर-नारी सुभावन में बाबा भी देउर समान बनि जात इहाँ, बिरछ हू जात बौराये ई फागुन में. * बुरा को माने, ई तो मदन खिलावत, बुहार देत मनोजाल मुक्त द्वार खोलि के राजा को अदेस को विरोध करे कौन, अंतर को कबाड़ हू जरावत है होलिके. * रागरंग देखि भूलि साखी औ रमैनी, अंड-बंड बकै लाग, ढंग देखो कबीर को, मधु और माधव मचाय रहे धूम, जड़-जंगम में मनसिज सों पायो है जीत को? *
BAHUT KHUB
जवाब देंहटाएंगुज़ारिश : ''बसंत है आया''
बढिया, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .... आंचलिक शब्दों का रंग ही अलग होता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर परस्ती,आपका आभार है प्रतिभा जी.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोग्स संकलक (ब्लॉग कलश) पर आपका स्वागत है,आपका परामर्श चाहिए.
"ब्लॉग कलश"
बुरा को माने, ई तो मदन खिलावत, बुहार देत मनोजाल मुक्त द्वार खोलि के
जवाब देंहटाएंराजा को अदेस को विरोध करे कौन, अंतर को कबाड़ हू जरावत है होलिके.
बहुत सुंदर ....
बहुत सुंदर..वसंत का जादू सिर चढ़ कर बोलता है..
जवाब देंहटाएंवाह ... आंचलिक भाषा का आनंद बसंत की खूबसूरती को कई गुना ज्यादा गर देती है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने
जवाब देंहटाएंअद्वितीय प्रतिभा है आपकी ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
बसंत सुहावत है..
जवाब देंहटाएंवाह ...अलग ही छटा है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना !
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की शुभकामनाएँ !!!
बनन में बागान में बगरो बसंत है ....!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ....
सरस्वती पूजन का पर्व मंगलमय हो ...सादर !
जवाब देंहटाएंमाता जी प्रणाम बस आनंद आ गया
जवाब देंहटाएंबसंत से फागुन तक सभी दृश्यों को समाहित करता सुंदर अतिसुंदर छंद, यूँ लगा जैसे सेनापति के युग में पहुँच गये. आभार
जवाब देंहटाएंWaah...Awesome creation !
जवाब देंहटाएंवसंत से फगुआ तक मनभावन... बहुत सुन्दर रचना, शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर ही बसंत आ गया...आप जो भी लिखती हो सदा बढ़िया होता है...बसंत की शुभकामनाएँ....
जवाब देंहटाएं