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शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

मनोकामना पूरो भारति !


सुकृति -सुमंगल  मनोकामना ,पूरो भारति!  
नवोन्मेषमयि ऊर्जा ,ऊर्ध्वगामिनी मति-गति  !
*
तमसाकार दैत्य दिशि-दिव में  , भ्रष्ट  दिशायें ,
अनुत्तरित हर प्रश्न , मौन   जगतिक  पृच्छायें ,
राग छेड़ वीणा- तारों में स्फुलिंग  भर-भऱ ,
विकल धूममय दृष्टि - मंदता करो निवारित !
मनोकामना पूरो भारति !
*
निर्मल मानस हो कि मोह के पाश खुल चलें ,
शक्ति रहे मंगलमय,मनःविकार धुल चलें .
अ्मृत सरिस स्वर  अंतर भर-भर  
विषम- रुग्णता  करो विदारित !
मनोकामना पूरो भारति !
*
हो अवतरण तुम्हारा  जड़ता-पाप क्षरित हो ,
 पुण्य चरण  परसे कि वायु -जल-नभ प्रमुदित हो.
स्वरे-अक्षरे ,लोक - वंदिते ,
जन-जन पाये अमल-अचल मति !
मनोकामना पूरो भारति !
*

15 टिप्‍पणियां:

  1. मैं तो फिर से सबसे पहले आ गयी..:D
    और बहुत बहुत प्रसन्न हुई कविता पढ़कर...सब कुछ एक ही कविता में समेट लिया आपने..ऐसी मनोकामनाएँ अवश्य पूरी होंगी...पूरी होनी ही चाहिए..
    नमन माँ भारती को...:)
    आभार कविता ke liye....ऐसा कुछ पढ़ना ही चाह रहा था मन...santushti हुई हृदय को.. :)

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  2. निश्चय पूरी हो नव मंगल स्तुति अबकी,
    आवश्यकता से अधिक भरे मन-गगरी सबकी,

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  3. बहुत सुन्दर आकांक्षा...बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें !

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  4. बंसतोत्‍सव की अनंत शुभकामनाऍं

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  5. तमसाकार दैत्य दिशि-दिव में , भ्रष्ट दिशायें ,
    अनुत्तरित हर प्रश्न , मौन जगतिक पृच्छायें ,
    राग छेड़ वीणा- तारों में स्फुलिंग भर-भऱ ,
    विकल धूममय दृष्टि - मंदता करो निवारित !
    मनोकामना पूरो भारति ....kitni sundar rachna....sundr shbdon se saji ,maa avashya prsnn huee hogi .... bdhai...

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  6. गौ रक्षा करने की जाग्रति हेतु एक ब्लॉग का निर्माण किया है ,आप सादर आमंत्रित है सदस्य बनने और अपने विचार /सुझाव/ लेख /कविता रखने के लिए ,अवश्य पधारियेगा.......

    http://gauvanshrakshamanch.blogspot.com/

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  7. नमन कर इन शब्दों को, वंदना में मैंने भी शीश नवाया।

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  8. आदरणीया प्रतिभा जी

    आपकी लेखनी को नमन !

    बहुत दिनों के बाद आपकी कविता पढ़ पाया.

    मन आनंदित हो उठा !

    सादर
    प्रताप

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  9. निर्मल मानस हो कि मोह के पाश खुल चलें ,
    शक्ति रहे मंगलमय,मनःविकार धुल चलें .
    अ्मृत सरिस स्वर अंतर भर-भर
    विषम- रुग्णता करो विदारित !
    मनोकामना पूरो भारति !...ab isse behtar kya

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  10. हो अवतरण तुम्हारा जड़ता-पाप क्षरित हो ,
    पुण्य चरण परसे कि वायु -जल-नभ प्रमुदित हो.
    स्वरे-अक्षरे ,लोक - वंदिते ,
    जन-जन पाये अमल-अचल मति !
    मनोकामना पूरो भारति !

    Bahut hi sundar rachana bilkul sangrhneey.... sadar abhar Pratibha ji.

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