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शनिवार, 24 दिसंबर 2011

एक नज़्म .


आसरा मेरा ही लें और मुझ पे एहसान करें  ,
बाहरी दुनिया से हुई इस कदर हताश हूँ मैं !
किसी को क्या पता कि क्यों उदास हूँ मैं !
*
मैं इक किताब हूँ ,नंबर लगे सफ़होंवाली ,
इसकी इबारत नहीं कहने से बदल पाएगी ,
लाख टोको या  लानत-मलामत भी करो
और  किसी रूप में ढाले से न ढल पाएगी ,
*
मैं जो मजमून  हूँ  कोरे  सफ़हे पर छपा ,
लाख कोशिश करो उड़ पायेंगं कैसे हरूफ़ ,
भले गल जाय पानी में या लपटों में जले
उभर आएंगी वही सतरें  लिए वो ही वजूद
*
रंग फीके पड़े  ,देखी है कितनी छाँह-धूप .
 वर्क बिखरें  जो हवा  संग ही उड़ जाएंगे ,
मोड़ना चाहो तो वहीं इक दरार आएगी ,
टूटती सतरें  अगर जोड़ीं, भरम  पड़ जायेंगे
*
वक्त के साथ पुराने हुये फीके भी हुये    ,
इन पे लिक्खी जो इबारत वो  बहुत पक्की है ,
क्यों करें परवाह कोई कहता है तो कहता रहे ,
ये जो मुसम्मात है , सचमुच में बड़ी झक्की है .
*
कच्ची मिट्टी नहीं फितरत जो बदल जाय मेरी ,
पक चुकी आंवे में फिर न चाक पे धर पाओगे
टूट के भी ये किसी के काम नहीं आएगी .
चूर कर कोई नई-सी शक्ल न दे पाओगे ,
*
इसका उन्वान सिरफ़ मेरी दास्तान नहीं
सबके अपने ही वहम ,और सबके अपने अहम्,
अपने को  भूलूँ  ,बँटूँ मैं  या कि  बिखर,चुप ही रहूँ
ठीक  किसी को लगे तो मानना क्यों मेरा धरम?
*
मैं भी इक  इंसान हूँ ,तालीम औ तजुर्बा है ,
पाँव पर अपने खड़ी हूँ  तो चल भी लूँगी ,
मैं क्यों गलत हूँ कि तुमसे अगर  सलाह न लूँ ,
हो गई भूल  कहीं   फिर से सही कर लूँगी
*
मैं समझ पाऊँ  दुनिया ख़ुद का नजरिया लेकर
लगेगी ठोकर ज़रा कुछ और सँभल जाऊँगी
 तुमको ही मलाल रह जायगा सुनती ही नहीं
दौड़ के हर बात पे रोने न बैठ जाऊँगी .
*
चल रही हूँ रास्ता कुछ देर एक ही जो  रहे
भूल से कोई न  समझ ले  उसी के साथ हूँ मै ,
तिल का ताड़ करना यहाँ पे शगल पुराना है
सोच कर हैरान हूँ चुप हूँ  कि गुमहवास हूँ मैं ,
किसी को क्या पता ...
*

27 टिप्‍पणियां:

  1. आसरा मेरा ही लें और मुझ पे एहसान करें ,
    बाहरी दुनिया से हुई इस कदर हताश हूँ मैं !
    किसी को क्या पता कि क्यों उदास हूँ मैं !



    वाह बहुत सुंदर नज़्म
    मज़ा आ गया पढ़ कर !

    आभार !!

    मेरी नई रचना अनमने से ख़याल

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  2. कोई भी एक -दूसरे से कमतर नहीं है . शब्द नहीं मिल रहे हैं जो कुछ कहूँ..

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  3. कच्ची मिट्टी नहीं फितरत जो बदल जाय मेरी ,
    पक चुकी आंवे में फिर न चाक पे धर पाओगे
    टूट के भी ये किसी के काम नहीं आएगी .
    चूर कर कोई नई-सी शक्ल न दे पाओगे ,
    यह नज़्म हमें नवचेतना प्रदान करती है और नकारात्मक सोच से दूर सकारात्मक सोच के क़रीब ले जाती है।

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  4. मैं इक किताब हूँ ,नंबर लगे सफ़होंवाली ,
    इसकी इबारत नहीं कहने से बदल पाएगी ,
    लाख टोको या लानत-मलामत भी करो
    और किसी रूप में ढाले से न ढल पाएगी ,
    *waah

    जवाब देंहटाएं
  5. वक्त के साथ पुराने हुये फीके भी हुये ,
    इन पे लिक्खी जो इबारत तो बहुत पक्की है ,
    क्यों करें परवाह कोई कहता है तो कहता रहे ,
    ये जो मुसम्मात है , सचमुच में बड़ी झक्की है .
    लाजवाव क्या तारीफ करूँ

    जवाब देंहटाएं
  6. रंग फीके पड़े ,देखी है कितनी छाँह-धूप .
    वर्क बिखरें जो हवा संग ही उड़ जाएंगे ,
    मोड़ना चाहो तो वहीं इक दरार आएगी ,
    टूटती सतरें अगर जोड़ीं, भरम पड़ जायेंगे

    बहुत बढ़िया नज़्म बेहतरीन

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  7. वक्त के साथ पुराने हुये फीके भी हुये ,
    इन पे लिक्खी जो इबारत तो बहुत पक्की है ,

    --वाह क्या बात है ...शब्द ब्रह्म है ...अमिट, अभन्ग, अक्षय...परन्तु किताब की व्यथा एक सच्चाई है...सुन्दर नज़्म...
    ---पेश है...
    " दिल की किताब पढ सके फ़ुर्सत किसे है यार ।
    आदमी तो चांद पर जाने को है तैयार ॥

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  8. कच्ची मिट्टी नहीं फितरत जो बदल जाय मेरी ,
    पक चुकी आंवे में फिर न चाक पे धर पाओगे
    टूट के भी ये किसी के काम नहीं आएगी .
    चूर कर कोई नई-सी शक्ल न दे पाओगे ,
    *
    आज तो आपका नया रंग दिखा ... बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..

    जवाब देंहटाएं
  9. रंग फीके पड़े ,देखी है कितनी छाँह-धूप .
    वर्क बिखरें जो हवा संग ही उड़ जाएंगे ,
    मोड़ना चाहो तो वहीं इक दरार आएगी ,
    टूटती सतरें अगर जोड़ीं, भरम पड़ जायेंगे

    बहुत ही उम्दा.... वाह! वाह!
    सादर बधाई...

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  10. wah hi niklegi ais rachna padh kar.

    nari ki kashmokash me ek bar aisa bhi daur aata hai ki jab vo aise khayaalaaton se guzarti hai aur khud ko mazboot aur bahut mazboot pati hai aur tabhi aise nirney leti hai jiske liye use kabhi dharti to kabhi durga ka roop mana gaya hai.

    urdu aur hindi ka bahut sashakt mishran hai is rachna me.

    hatts off.

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  11. Naarii kii Asmitaa, dridh Sankalp Aur Aatm-
    Vishwaas kii jiivant kathaa sii ye Nazm Man kii Gahrii men Utar gayii.Vyaktitva kaa ye roop Shlaghniiya Hai. Urdu par bhii Aapkaa ye adhikaar vismit kar gayaa.Kuchh Kathin shabdon ke arth de detiin to aur bhii sundar hotaa.
    Kuchh gadbadii ke kaaran roman men likh rahii hoon.kshamaa karen.nazm behad khoobsoorat hai aur sachchaaii ko bayaan karatii hai.

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  12. रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष -2012 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । धन्यवाद ।

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  13. वक्त के साथ पुराने हुये फीके भी हुये ,
    इन पे लिक्खी जो इबारत तो बहुत पक्की है ,
    क्यों करें परवाह कोई कहता है तो कहता रहे ,
    ये जो मुसम्मात है , सचमुच में बड़ी झक्की है
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    vikram7: आ,मृग-जल से प्यास बुझा लें.....

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  14. सुंदर अभिव्यक्ति बेहतरीन रचना,.....
    नया साल सुखद एवं मंगलमय हो,....

    मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--

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  15. नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ।

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  16. "कच्ची मिट्टी नहीं फितरत जो बदल जाय मेरी ,
    पक चुकी आंवे में फिर न चाक पे धर पाओगे"

    सशक्त रचना।
    नववर्ष की शुभकामनाएं।

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  17. मैं इक किताब हूँ ,नंबर लगे सफ़होंवाली ,
    इसकी इबारत नहीं कहने से बदल पाएगी ,--- कितनी सुन्दरता से कही है ये बात! कितने गहरे, कितने अलग से बिम्ब दिखा गई ये पंक्तियाँ!
    भले गल जाय पानी में या लपटों में जले
    उभर आएंगी वही सतरें लिए वो ही वजूद --- खूबसूरत! जाने क्यों आँधी का एक सीन याद आया ये नज़्म पढ़ते पढ़ते!
    *
    वक्त के साथ पुराने हुये फीके भी हुये ,
    इन पे लिक्खी जो इबारत तो बहुत पक्की है , --- यहाँ 'तो' को 'वो' करना चाहेंगी?
    क्यों करें परवाह कोई कहता है तो कहता रहे ,
    ये जो मुसम्मात है, सचमुच में बड़ी झक्की है -- बहुत ही सुन्दर और ... आपको जानती हूँ सो... सच्चा भी :)
    *
    कच्ची मिट्टी नहीं फितरत जो बदल जाय मेरी ,
    पक चुकी आंवे में फिर न चाक पे धर पाओगे -- वाह!
    टूट के भी ये किसी के काम नहीं आएगी .
    चूर कर कोई नई-सी शक्ल न दे पाओगे ,--- एक तरह की जिद्दी सी खूबसूरती है इस बंद में !
    *
    सादर शार्दुला

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  18. शार्दुला जी ,
    वांछित सुधार कर दिया .
    धन्यवाद .

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  19. प्रभावशाली अभिव्यक्ति ...
    शुभकामनायें !

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