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शनिवार, 29 अक्टूबर 2011

शार्दुला की आस्था के स्वर.

 आज की पोस्ट में, अपनी मित्र शार्दुला जी की आस्था के स्वर आप सब तक पहुँचाना  चाहती हूँ ,उन्हीं के वक्तव्य के साथ -
     
(भारत की धऱती से  से दूर ,सारे दिन  ऑफ़िस में व्यस्त ) ..इतनी  सरूफ़ियत के बावजूद ये गीत इसलिए लिखा गया क्योंकि अन्नकूट के दिन सुबह अन्नकूट नहीं बना सकी थी सुबह ,जल्दी से बस जो सबके टिफिन के लिए बनाया था, रायता और केला माधव को चढ़ा के आ गई थी... पसाद चढाते समय आँखों में आँसू आ गए और मन ने कहा गोपाला, जो भी जहाँ  भी है सब तेरा है, सब तुझे अर्पित है... अब यही खाओ जब तक लौट नहीं आती घर शाम में...

 रात को फ़िर अन्कूट बनाते बनाते नौ बज गए थे..
बस  गोवर्धन पूजा के दिन दफ़्तर जाते समय मेट्रो ट्रेन में ये कविता बन गई थी ..." जो जैसा है वैसा अर्पण".
.
*

माधव तेरे श्री चरणों में

माधव तेरे श्री चरणों में जो जैसा है, वैसा अर्पित
आर्द्र अरुण अड़हुल का आंचल, नाद शंख सागर में गुंजित
गंध, हवाएं, ऋतु की डलिया, फल-फूलों से भरी-भरी सी
सबमें है तू, तुझमें हैं सब, तू ही याचक, तू ही वन्दित
*
उन्नत शिखर, घुमंतू बादल, रज नटखट शीशे चमकाती
उषा सुन्दरी, निशा सहचरी, संध्या वंदन, लीन प्रभाती
गोचर स्पर्श, खिलौने तेरे, बिखराए तूने गोपाला
तेरे अर्पण को वनदेवी, मोर-पंख पे मणि रख जाती
*
भाव-रुंधे स्वर, प्रीत-जुड़े कर, शुचि, संपन्न, शुभ्र सब तेरे
तिमिर हृदय के, तुमुल विलय के, पातक-हरण ग्रहण कर मेरे
जीवन-धारा, कूल-किनारा, यश-अपयश, सुख-दुःख की लहरें
देय-अदेय, बिंधे छन्दों की बाँसुरिया वनमाली ले रे!
 *
सादर ,
शार्दुला.
(गोवर्धनपूजा, २७ अक्टूबर २०११).
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मेरी बधाई स्वीकार करो ,प्रिय शार्दुला!

12 टिप्‍पणियां:

  1. भक्ति और समर्पण की सरल अभिव्यक्ति।

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  2. माधव तेरे श्री चरणों में जो जैसा है, वैसा अर्पित
    तवदीयं वस्‍तु गोविन्‍दम .. तुभ्‍यमेव समर्पये !!

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  3. उन्नत शिखर, घुमंतू बादल, रज नटखट शीशे चमकाती
    उषा सुन्दरी, निशा सहचरी, संध्या वंदन, लीन प्रभाती
    अद्भुत शब्द योजना।

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  4. आदरणीया प्रतिभाजी,
    मेरी इस साधारण सी प्रार्थना को आपने अपने साहित्यिक ब्लॉग पे जगह दी, ये ठीक वैसा जैसे अपने जन की अति अल्प भेंट भी अधिक जान कर ग्रहण करते हैं गुणीजन!
    आ. प्रतिभाजी, शकुन्तला जी, मणि जी, अरुण जी, प्रवीण जी, संगीता जी, मनोज जी और अन्य सभी जो इसे पढ़ें, उत्साहवर्धन के लिए आप सब का हृदय से आभार.
    नमन!
    सादर शार्दुला

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  5. बहुत सुंदर भक्ति और समर्पण की सुंदर अभिव्यक्ति छोटा मुह और बड़ी बात प्रभु को सच्ची भक्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहिए होता। आपकी इस रचना को पढ़कर बचपन में देखा था एक चलचित्र जिसमें दिखाया गया था की जब भगवान श्री कृष्ण द्रोपदी और पांडवों के घर जाकर उनसे भोजन के लिए आग्रह करते हैं और द्रोपदी प्शुपेश में पढ़ जाती है कि घर में कुछ है ही नहीं तो क्या अर्पण करूँ प्रभु को और प्रभु कहते है। "मैं भूखा हूँ भोजन लाओ जो कुछ भी है पास तुम्हारे लओ"। और जब द्रोपदी विवशता वश आँखों में आँसू भरकर केवल एक अन्न का दाना लाकर प्रभु के चरणों में रख देती है तब प्रभु कहते हैं बस एक अन्न का यह दाना सुख देगा मुझ को मन माना.....

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  6. jaruri to nahi mandir ja kar ghante baja kar dikhava kiya jaye....madhav to sab ke man me baste hain unhone apke dost ki aastha man se jaan li hogi....bahut sunder likha.

    ham naukripesha log mandir k aage se nikalte hue bhagwan ji se yahi badbadate hain.....ki bhagwan ji dekho na apko pata hai na ham kitne busy hain time nahi hai apke dwar aa kar hath jod abhivadan karne ka bhi...to bhagwan ji yahin door se he hamara naman sweekar kare.

    ye sab vo apke kaanha jaante hain. :)

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  7. आ. पल्लवी जी, अनामिका जी, देवेन्द्र जी,
    उत्साह वर्धन के लिए आप सब का भी हृदय से आभार!

    पल्लवी जी ने जो कहानी कही है वह मुझे भी याद है, बहुत ही सुन्दर animation story हुआ करती वो दूरदर्शन पे! अनामिका जी, आपने ठीक ही कहा है मन की "सदाएं' ही तो सुनते हैं देव, घंटों की टंकार उन्हें कब पहुँच सकी है! हाँ, मगर ये भी सत्य है कि कभी-कभी पूजा स्थल के स्निग्ध वातावरण से मन अधिक रमता भी है ईश में!
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    आ. संगीता जी, आपने जो एक वाक्य में इस गीत को बाँध दिया है, मन प्रसन्न हो गया पढ़ कर...

    आप सब का स्नेह मेरी धरोहर हुआ!

    सादर शार्दुला

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  8. शार्दुला जी...

    कविता की पहली पंक्ति हमेशा याद रहेगी....जाने-अनजाने दोहराती रहूँगी भगवान् जी के आगे।
    आभार इतने सुंदर गीत के लिए शार्दुला जी!मन कृष्णमय कर निहाल कर दिया आपके शब्दों ने...
    जिन आँखों से भगवान् जी के लिए अश्रु छलकें...जो हृदय भूमि गीली होकर ऐसा गीत रचे.....नमन उन्हें और...गीत के भावों को।

    (आभार प्रतिभा जी...अकेली कविता पढ़ने में मन उतना आनंद नहीं पाता जितना कि कविता के मूल भाव को जानने के बाद पढ़ने में मिला...आभार इस गीत को यहाँ लाने के लिए..अन्यथा वंचित रह जाता मन रचना से...)

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  9. माधव तेरे श्री चरणों में जो जैसा है, वैसा अर्पित
    आर्द्र अरुण अड़हुल का आंचल, नाद शंख सागर में गुंजित

    शार्दुला जी कि आस्था को हम तक पहुंचाने के लिए आपका आभार .. पढ़ कर मन तृप्त हुआ .

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