पेज

बुधवार, 28 अक्टूबर 2009

मधुमय वासन्ती

हिल उठी आम की डाल , कूक से गूँज गई अमराई ,
फूलों के गाँवों में बाजी मधुपों की शहनाई !
*
शृंगार सज रही प्रकृति ,ओढ़ कर चादर हरी हरी ,
कञ्चन किरणों के घूँघट में ,कुंकुंम से माँग भरी !
अलकों से मोती ढलक रहे शबनम बन ,
पाहुने शिशिर को देते हुये बिदाई !
*
हँस उठे धरा के खेत-पात ,पलकों में राग भरे ,
आई सुहाग की धूम लिये वासन्ती फाग भरे !
लुट रहा अबीर- गुलाल दिशा अंचल से ,
झर रही गगन से ऊषा की अरुणाई !
*
सुषमा मुखरित हो उठी मिल गईं नूतन भाषाये ,
लहरों ने दौड-दौड कर जल में रचीं अल्पनायें !
लो ,रुचिर भाव होरहे व्यक्त धरती के
चित्रित करने मधुमय वासन्ती आई !
*

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें