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बुधवार, 21 अक्टूबर 2009

प्रलय-यामिनी

बढी आ रही,इक प्रलय की लहर
ने कहा जिन्दगी से अरे यों न डर
आज कितनी मधुर है प्रलय यामिनी !
*
आज लहरें बढेंगी बुलाने तुम्हें ,
आज स्वागत करेगा तिमिर यह गहन !
फेन बुद्बुबुद् बिछाये यहाँ पंथ में
उस गगन पंथ से साथ ले धोर घन ,
वह महाकाल का रथ बढा आ रहा ,
बज रहे ढोल बाजे गहन घोर स्वर ,
मौर मे झलमलाती है सौदामिनी !
*
आँसुओं से भरे ये तुम्हारे नयन ,
यों नव्याकुल बनो मैं अभी साथ हूँ ,
यह न घर था तुम्हारा सदा के लिये ,
आज तुम पर जगत के प्रहर वार दूँ !
द्वार का पाहुना है अनोखा बडा ,
सिर्फ़ स्वागत सहित लौटने का नहीं ,
साथ मे है बराती प्रलय-वाहिनी !
*
आज जाना पडेगा दुल्हन सी विवश ,
इस धरा से अभी नेह से भेंट लो !
यह सदा की सहेली घडी ढल रही ,
छुट रहा साथ इससे बिदा माँग लो १
आ रहा आज कोई बुलाने तुम्हें उस
अपरिचय भरी शून्य की राह में ,
लो सुनो ,यह बिदा की करुण रागिनी !
*

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