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शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

गौरा का सुहाग.

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 गौरा बिदा हुई चललीं  , धूम भइ तिहुँ खण्डा ,
नैना भरे माई दिहिले, सुहाग भरि- भरि हंडा.
फैली खबर, सब हरषीं ,मेहरियाँ दौरि  परलीं,
गौरा के चरनन लगि-लगि ,सुहाग जाँचन$ लगलीं !
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खेतन ते भागीं, पनघट से भगि आईं, घाटन से दौरी  धुबिनियाँ,
गोरस बहिल, ऐसी लुढ़की मटकिया तौ हूँ न रुकली बवरिया.
दौरी भड़भूँजी, मालिन, कुम्हारिन ,बढ़नी उछारि  कामवारी,
गौरा लुटाइन सुहाग दोउ हाथन, लूटैं जगत के नारी !
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 ऊँची अटारिन खबर भइली,   साज साजै लागीं घरनियाँ,
करिके सिंगार,घर-आँगन अगोरे तक,बचली फकत एक हँडिया.
चुटकी भरि गौरा उनहिन को दिहला, 'एतना रे भाग तुम्हारा,
दौरि-दौरि लूटि-लूटि लै गईं लुगइयाँ, जिनके सिंगार न पटारा !
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' एही चुटकिया जनम भर सहेजो, मँहगा सुहाग का सिंदुरवा.
तन-मन में पूरो, अइसल सँवारो रंग जाये सारी उमरिया !'
गिनती की चुरियाँ,बिछिया,महावर,सिंदुरा,सहेजें कुलीना ,
गौरा की किरपा कमहारिन पे तिनको सुहाग नित नवीना!
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भुरजी, कुम्हरिन ते माँगे #दुआरे जाइ , आँचल पसारि गुहरावें ,
मंगल बियाह-काज इन बिन न पुरवै, कन्या सुहाग-भाग पावे .
 गौरा का सेंदुर अजर-अमर भइला, उन जइस को बड़भागिन रे,
इनही से पाये सुहाग-सुख-दूध-पूत, तीनिउँ जगत की वासिन रे !
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( $ जाँचन= याचना करना ,माँगना .
# यह  एक रिवाज़ है कि विवाह से पहले स्त्रियाँ सुहाग की याचना करने भड़भूँजिन , कुम्हरिन आदि के पास जाती हैं , वही कन्या को चढ़ाया जाता है .). 
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बुधवार, 12 नवंबर 2014

नचारी - गौरा की बिदाई .

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तोरा दुलहा जगत से निराला उमा, मैना कहिलीं,
कुल ना कुटुम्व, मैया बाबा, हम अब लौं चुप रहिलीं !
कोहबर्# से निकसे न दुलहा ,बरस कुल बीत गइला !
सिगरी बरात टिक रहिली  बियाही जब से गौरा.
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रीत व्योहार न जाने बसन तन ना पहिरे ,
अद्भुत उमा सारे लच्छन, तू कइस पतियानी रे !
भूत औ परेत बराती, सब हि का अचरज होइला,
भोजन पचास मन चाबैं तओ भूखेइ रहिला !

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रीत गइला पूरा खजाना कहाँ से खरचें बहिना ,
दिन-गिन  बरस बितावा परिल कब लौं  सहना ?
पारवती सुनि सकुची, संभु से बोलिल बा -
 केतिक दिवस बीत गइले , बिदा ना करबाइल का ?

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सारी जमात टिक गइली, सरम कुछू लागत ना ,
 अद्भुत बरात रे जमाई, हँसत बहिनी,- जीजा !
हँसे संभु, चलु गौरा  बिदा लै आवहु ना ,
सिगरी बरात, भाँग, डमरू समेट अब, जाइत बा !

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गौरा चली ससुरारै, माई ते लपिटानी रे
केले के पातन लपेटी बिदा कर दीनी रे !
फूल-पात ओढ़िल भवानी ,लपेटे शिव बाघंबर ,
अद्भुत - अनूपम जोड़ी, चढ़े चलि बसहा पर !
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(# कोहबर - नव-दंपति का क्रीड़ागृह )