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बुधवार, 15 फ़रवरी 2012


एक नचारी .
*
(शंभु के विवाह को चार दिन शेष रह गये .हिमाचल के घर तैयारियाँ चल रही होंगी .शंभु कैसे क्या करेंगे यही सोच रही हूँ - )
गन सारे जुटि रहे आस-पासे ,कइस औघड़ को दुलहा बनावे,
पूरो संभु को समाज आय ठाड़ो कोऊ जाने न लोक-वेवहारो !
घरनी बिन ,रहे भूतन को डेरा रीत-भाँत कोऊ जाने ना अबेरा ,
दौर-भागि करें चीज-वस्त पूरा, सो समेटि रहे भाँग और धतूरा ,
*
बाट देखि रह्यो नांदिया  दुआरे  लै के डमरू भये संभु असवारे
चली भूत-प्रेत की जमात संगे,रूप सब को विरूप, विकल अंगे
सारे जग के अनाथ दई-मारे , आय जुटे तबै संभु के दुआरे ,
होहिं पूरन मनोरथ सुभ-काजे , देइ-देइ के असीस संग लागे .
*
लहर लहर करे गंग की तरंगा ,संभु खुदै झूमि रहे भंग-रंगा ,
जटा -जूट जड़ी बाल-इन्दु लेखा,धार गजपट विचित्र वेष-भूषा.
ताल देई-देई डमरू बजावैं, मुंडमाल देखि जिया थरथरावे ,
लै बरात संभु आय गे दुआरे ,लहराय रहे नाग फन निकारे.
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पुर लोग देखि दुलहा बिचित्तर ,दौरि-दौरि के सुनावैं सब चलित्तर,
नाचें मगन मन भूत- प्रेत सारे , डरि भागे लोग चकित नैन फारे.
परिछन के काज कनिया के वर की , सासु आरती लै संग नार घर की  ,
फुंकार नाग, गिरत-परत भागीं , झनझनात गिर्यो  थाल अक्षतादि .
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रोय नारद को कोसि रही मैना,दाढ़ी-जार विधि ,तोहि नाहिं चैना .
संग बिटिया लै कूदि परौं गिरि ते, कइस रही साथ उमा अइस वर के
एक जोड़ा न जापै  एक लुटिया ,केहि भाँति रहि पाई मोर बिटिया ,!
विधि, रूप धारि आये इहि लागे ,भाग जागि गा  तुम्हार  समुझावैं !
*
जोग धारे संभु अब लौं इकाकी ,संजोग बन्यो  जइस दीप-बाती  
जेहि लागि उमा जन्म धरि तपानी, हाथ मांगे आयो महा-वरदानी,
आज विश्वनाथ  आय द्वार ठाड़ो ,जस लेहु आपुनो  जनम सँवारो
गिरि, कन्या समर्पि देहु बर को ,देवि पूरना,संपूरन करो हर को !
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बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

नारीत्व - एक गाली .


नारी-जन्म एक गुनाह  ,
आजीवन-दंड का प्रावधान !
कितना कुछ है दुनिया में
 सुख-सुविधा के लिये आदमी के ,
जिसमें यह  भी एक वस्तु ,
 शुरू से छँटती-ढलती
उसी के निमित्त ,
स्वयं पर लादे निषेधों का विधान !
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नारीत्व -
एक गाली,
 आदमी के मुँह चढ़ी ,
 अपनी सामर्थ्य
प्रमाणित करने को !
मन की नालियों का बहाव ,
 उमड़-उमड़ फूट  निकलता है ,
अपनी कुत्सा औरों पर छींटते !
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औरत, एक खिलौना
मन बहलाने को ,
कमज़ोर  माटी का भाँडा -
सारी छूत समेटे .
बस में न रहे , तोड़ फेंको .
अधिकारी हो न ,
शक्ति-सामर्थ्य संपन्न तुम !
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