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सोमवार, 30 मई 2011

नचारी (वर की खोज), भाग 2 - . & भाग 3 - .

 भाग 2 -
(परीक्षा.)

परीच्छा अहै बहुत भारी ,

इहाँ देखौ कौने हारी!
*

मात-पिता के माथ नवाइल षड्मुख तुरत पयाने,

चढ़ि मयूर- वाहन पल भर में हुइ गे अंतरधाने!

परिल सोच में गनपति ,मूसा देखि वियाकुल भइले,

एतन भारी बदन पहिल, कइसन परिकम्मा कइले!

कौन विधि साधौं पितु महतारी!
*

वेद-पुरान ग्रंथ सुमिरे ,कोऊ उपाय मिलि जाई,

आपुन बुद्धि भरोसो करि ई बाजी जीतौं जाई!

हँसि परनाम किहिल दोउन को विधिवत करि परिकम्मा

सम्मुख आइल चरन परस फिर बोले पाइ अनुज्ञा-

'  तीनि लोकन ते तुम भारी !

*

'तिहुँ लोकन की परकम्मा सम माय-पिता की भइली,

सबहि लोक इन चरनन में देखिल ,अस बानी कहली!'

'धन-धन पूत , बड़ो सुख दीन्हों तुहै बियाहिल पहिले,

सब लोकन में बुद्धि प्रदाता ,विघ्न-विनाशक भइले!

अब तुम्हरे बियाह की बारी!'
*
 भाग - 3.
(विवाह)

षड्मुख घूमि तीन लोकन में आइ चरन सिर नाये !

स्रम से थकित आइ बइठे, देखित गणेश मुस्काये !

'गये न तुम ,काहे से अपनो वाहन देख डेराने ?'

'पूरन काज कियो बुधिृबल ते गजमुख परम सयाने .

गणपति पहिल बियाहे कन्या ,पहिल पूजि सनमाने !'

शंकर कहिन ,'सबै साधन में श्रद्धा -बुधि है भारी !'

गुस्सइले कुमार,' बातन से मोहे पितु महतारी ,

गई सबहिन की मति मारी !'
*

'समरथ औ सुभ-मति से पूरन उचित पात्र अधिकारी,

इनका धारन करै बिस्व हित होवे मंगल कारी !

तनबल ,मनबल और बुद्धिबल की हम लीन परीच्छा ,

जा सों होय सकारथ रिधि -सिधि हमरी इहै सदिच्छा !'

शिकायत षड्मुख की भारी !
*

'पार्वती समुझावैं ,' तुम अति वीर महा-बलधारी ,

साधन और उपाव सहज करि देत काज सब भारी !

बल ते सरै न काज अगम, तब बुद्धि उपाय सुझावै ,

हर्र-फिटकरी बिना रंग पूरो-पूरो चढ़ि जावे !

पूत तुम समुझौ बात हमारी !'

*

'बुद्धि वीर बे ,वे बाहु वीर तुम दोनिउ मोर दुलारे ,

दुइ कन्यन सों दोऊ भैया ब्याह करहु मोरे बारे !'

खिन्न कुमार उठे बोले 'तुम जौन कहा हम कीन्हा ,

आज्ञा सिर धरि दौरि थक्यो, तौहूँ जस नेक न दीन्हा !

करो तुम ,जो भावै महतारी !
*

'स्रम पुरुषारथ भयो अकारथ हम बियाह ना करिबे ,

उचटि गयो मन, अब हम जाइ कहूँ अनतै ही रहिबे !'

गौरा गनपति करैं जतन ,पै अइस कुमार रिसाने .

बहुत करी विनती कर जोरे ,विधि निरास पछिताने ,

*

पसुपति करि परबोध थकाने केहू भाँति न मानै ,

दोनिहुँ कन्या एकहि बर सों ब्याहन की तब ठाने !

'लिखी जो कउन सकै , टारी !'

*

भयो बियाह वेद-विधि गिरिजा परिछन कीन्ह बधुन को ,

गौरा को परिवार निरखि अति अचरज देव-मुनिन को !

गनपति पाये रिद्धिृ-सिद्धि ,द्वौ पुत्र लाभ-सुभ जनमे ,

सुर-मुनि सबै सिहात कामना करत कृपा की मन में !

बिघनहर्ता गजमुख धारी ,
 
देउ सारी बाधा टारी !
*

शनिवार, 28 मई 2011

नचारी - वर की खोज

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बर खोजन चले विधना ,
 कन्या दोउ गुनखानी !


'ऋद्धि-सिद्धि दोउ जुड़वाँ बहिनी अब लौ क्वाँरी रहलीं,

का सों का भइल सँजोग ',विधात्री आकुल विधि सों कहिलीं !

'सुघर सयानी दोनिउ बहिनी बहुत जतन सों पालीं,

सुर नर देखि सिहावैं ,न जनौ केहिके भाग जगइलीं!

सुलच्छनी कल्यानी !

बर खोजन की ठानि मनहिं मन ठाड़े भै बिधना,

लायक लरिका होय, न जने दौरन परि है केतना !

सतुआ बाँध निकलि गे घर ते काँधे डारि अँगौछा,

बाँधि गठरिया धरि लीनो तिन संग डोर औ' लोटा!

मन में चिन्त समानी!

सूरज तपत ,चंद्रमा रोगी अइसन बर ना चहिले,

पवनदेव को ठौर-ठिकाना केऊ जान न पइले!

देवराज के देखि चरित्तर मुँह घुमाइ हँस रहिले,

पुरुसोत्तम हरि सेसनाग परि छीरसिन्धु में सोइले!

शिव-शंकर अवढर दानी !

सोर भयो सब लोकन में ,बर खोजन विधना आयेल

ऋषि-मुनि ललचैं ,रिधि-सिधि कारन ,जप-तप सबै हेराइल,

कौन उपाय मिलहि कन्या, जागी हिय अस अभिलासा,

भारी सोच कौन विध जीत लेहुँ विधि को बिसबासा!

मति सबहिन केर हिरानी !..

तीनहुँ लोक कउन अस जन्म्यो कन्यन के संजोगे,

घूमि,घूमि थक गइले विधना कोउ न लग अनुरूपे!!

आइ देवता सारे सजि-बजि , बढ़ि आपुन गुन बरनै!

विधि विसमित अब हँसैं कि रोवैं ,सिर पीटल खिसियौंने!

का सों कहों कहानी!

देवि सुरसती दया लागि -' काहे कैलास न गइले,

दुइ कुमार गिरिजा के अब तो ब्याहन लायक भइले

अन्नपूरणा सासु ,बहुरियाँ रिधि-सिधि अनुपम जोगा,

अरपन करि निज कर सों नरियल तुरतै करो बरीच्छा!

आपुन मन में ठानी!'

देखि्य़ो नारियर ,कुँवर मुदित भे ,हर-गिरजा हरषइले,

घूम मचिल सारे शंकर गण ताली दै-दै नचिले!

गौरा हँस चुप रहलीं ,बोलेल विधना ते तुरतै हर,

'पहिल परिच्छा होइल करबे काहू को केहि का बर!

दोउ कन्या गुनखानी!'

षड्मुख -गणपति देखि आँखि भऱ विधना सब सुख लहिले,

कोउ ब्याहिल पीछे तो का , कोऊ ब्याहिल पहिले!

'परिकरमा तीनिहुँ लोकन करि जौन पहिल जस लहिले

समरथ होइल , गुणमंती कन्या सो निहचय पइले!'

सुनि मुसुकाहिं भवानी

जबै बर खोजन चले बिधना !
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