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शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

मक्खियाँ ---

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कितनी मक्खियाँ उड़ रही हैं !
नहीं ये कविताएं हैं ,
पत्रिकाओं पर जम जाने के लिए -मिठाई हो जैसे !
हाथ हिलाता परेशान संपादक बेचारा ,
जितनी हटाओ और उड़ आती हैं ,
एक बार मे कितनी-कितनी !
सबसे आसान काम - कविता लिख डालो ,
दूसरे लोग हैं न सोचने को समझने को !
शब्द ?
डिक्शनरी उठा लो ,जितने चाहो छाँट लो !
तुक मिलाना जरूरी नहीं !
जो लिखो- वाह !वाह !
विज्ञापन से बची किसी खाली जगह को
भरने के काम आ जाय बस काफ़ी है !
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