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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

लोग

*
  आज फिर एक डायन ,
बाँसों से खदेड़-खदेड़ यातनायें दे ,
 मौत के घाट उतार दी गई ।
 इकट्ठे हुये थे लोग
 यंत्रणाओं से तड़पती
नारी देह से उत्तेजित आनन्द पाने !

खा गई पति को ,
 राँड है !
जादू-टोना कर चाट जाती बच्चों को ,
नज़र लगा कर ,चौपट कर दे जिसे चाहे ,
काली जीभ के कुबोल इसी के !

अकेली नारी !
बेबस ,असहाय !
कौन सुने उसकी ?
कहीं, कोई नहीं !

कोंच रहे हैं अंग-प्रत्यंग,
जितनी दारुण यातना ,
उतनी ऊँची किलकारियाँ !
ख़ून से लथपथ,
मर्मान्तक पीड़ा से
ऐंठता शरीर ठेल-ठेल ,
ठहाके लगाते लोग !
उन्मादग्रस्त भीड़ और
 अकेली औरत !

बदहवास भागती है !
 जायेगी कहाँ !
कहाँ जायगी, डायन ?
दर्दीली चीखों से रोमांचित-उत्त्तेजित
पत्थर फेंक-फेंक हुमस रहे लोग !
प्राणान्तक यंत्रणायें देते
असह्य सुख में
किलकारियाँ मारते लोग !

कौन सी नई बात !
सदियों से हर बरस
यही लीला देखने
 इकट्ठा होते हैं -बड़े चाव से लोग  !

वही पुरानी कथा -
आती है एक नारी,
स्वयं -प्रार्थिता ,
नारीत्व की सार्थकता हेतु ,
पुरुष की कामना लिये !
और शुरू हो जाता है तमाशा !

प्रर्थिता को एक दूसरे के पास फेर रहे
कंदुक सा बार-बार !
(पुरुष कहाँ अकेला ,
सब साथ होते हैं उसके !)
हो गई विमूढ़ , हास्य-पात्र ,
स्वयं-प्रार्थिता !
ऊपर से तिरस्कार की मनोव्यथा !
लोग रस विभोर !
उठ रहा है रोर !

क्रोध -औ'विरोध,
कटु वचनों के कशाघात,
और आत्म-श्रेष्ठता-ग्रस्त पौरुष का वार.
अंग-भंग कर संपन्न महत्-कार्य ,
मनुजता तार-तार!
समवेत अट्टहास !
गूँजते जयकार  !

 मुख विवर्ण-विकृत ,
लिखी पीड़ा अपार,
 ऐंठता देहाकार !
ठहाके लगाते लोग !

रक्त-धारायें बहाता तन ,
घोर चीत्कार करती ,
भागती है वह, 
अति आनन्द से हुलसते
नाच उठते हैं लोग !

 सदियों से,साल-दर साल
यही मनोरंजन होता आया है.,
 उत्सव यही देखने
 अब भी तो आते हैं ,
वीभत्स आनन्द के प्यासे लोग!

18 टिप्‍पणियां:

  1. गजब की टिप्पणीयुक्त, व्यंग्यात्मक रचना....
    साधुवाद।

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  2. निशब्द करता मार्मिक शब्द चित्र ।

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  3. अंतस को कचोटती निशब्द करती अभिव्यक्ति आदरणीय दी ।
    सादर

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  4. सच कुंठित सोच का अंत नहीं शिक्षित भी कितने अनपढ़ों जैसा व्यवहार करते हैं एक तरफ युग राकेट में उड़ान भर रहा है,दूसरी और वही अंधविश्वास और वर्जनाएं।
    अद्भुत! मर्मस्पर्शी लेख।

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  5. अकेली नारी !
    बेबस ,असहाय !
    कौन सुने उसकी ?
    कहीं, कोई नहीं !,,,,,,दिल को स्पर्श करती हुई सच को आईना दिखाती हुई बेहतरीन रचना ।आदरणीया प्रणाम,

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  6. मुख विवर्ण -विकृत ,
    लिखी पीड़ा अपार
    ऐंठता देहाकार !
    ठहाके लगाते लोग !..स्त्री संघर्ष को दर्शाती सटीक रचना..।

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  7. प्रभावशाली लेखन - - दीपावली की असंख्य शुभकामनाएं - - नमन सह।

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  8. मन मोहक व्यंगात्मक रचना |बहुत बहुत सराहनीय |

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  9. स्त्री जीवन संषर्षों की कहानी है

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  10. badi hi sunder post hai, hum is post ko apne doston ke saath bhi jarur share krenge, thanks, Free me Download krein: Mahadev Photo

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