tag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post3501649866949294594..comments2023-12-29T02:05:21.545-08:00Comments on शिप्रा की लहरें: कभी कभीप्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-16093757285752888182011-02-10T10:19:27.506-08:002011-02-10T10:19:27.506-08:00'कैसी यह अदम्य तृष्णा,जो नयनो को ही छाये लेती&...'कैसी यह अदम्य तृष्णा,जो नयनो को ही छाये लेती'<br />hmm<br />'चुप रहने से क्या जब जतला दे उतरा आता भीगापन <br />जिह्वा पर आ कह जाए लो चख लो अब अपना खारापन'<br /><br />बार बार पढ़ा इन दोपन्क्तियों को..हर बार दूसरी पंक्ति का लुत्फ़ बढ़ता रहा......:)<br /><br /><br />'सब से ओझल हो जाने को यही शेष उपक्रम होता है !'<br />न! मैं तो सहमत नहीं इस अंत से...:(...<br /><br />आखिरी पद से असहमत होने के बावजूद..पसंद आई कविता......स्याह रंग थी..मगर शब्दों की वजह से उतनी भी स्याह नहीं लगी..जितने उसमे भाव थे...:)<br /><br />जी...प्रतिभा जी...एक बात कहना चाहूंगी पूरी विनम्रता से...'महफ़िल' शब्द यहाँ बहुत खटका मुझे...एक तो आप इतना शुद्ध लिखतीं हैं कि फट से नज़र में आ गया ये उर्दू लफ्ज़..दूसरे (मुआफ़ कीजियेगा ) मुझे भाषा में थोड़ी तकलीफ़ है..... :(...इसी विषय में कई शायरों से उलझी हूँ मैं...वो लोग भी सही logic देते हैं हालाँकि mujhe hi aadat nahin hoti..:(....कि उर्दू हिंदी या अरबी के वे शब्द जो बहुतायत में आम बोलचाल kee भाषा में बोले ,लिखे और पढ़े जाते हैं........उनका प्रयोग जायज़ है कविता में....जैसे आपने महफ़िल लिया...ऐसे ही ''ध्यान'' लफ्ज़ को परवीन शाकिर साहिबा ने अपनी उर्दू ग़ज़लों में कई दफ़े प्रयोग किया है...<br /><br /><br />खैर.....<br /><br />बधाई कविता के लिए...:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-70481206762075175772010-05-01T00:17:35.131-07:002010-05-01T00:17:35.131-07:00बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भ...बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा हैसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.com