tag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post9179951441638179599..comments2023-12-29T02:05:21.545-08:00Comments on शिप्रा की लहरें: भू- स्तवन. ( उत्तरार्द्ध ).प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-76998071027857000772011-12-21T01:31:16.999-08:002011-12-21T01:31:16.999-08:00अद्भुत लगा सब पढ़ना ..अद्भुत लगा सब पढ़ना ..संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-27606292250950448362011-10-23T12:01:53.514-07:002011-10-23T12:01:53.514-07:00।''माँ धरणि के पुत्र.... उनका भाग सादर'...।''माँ धरणि के पुत्र.... उनका भाग सादर''<br /><br />इस छंद के पहले तक मन प्रसन्न होता रहा..काव्य सौन्दर्य से आनंदित होता रहा। प्राकृतिक आपदाओं को आपके शब्दों और दृष्टिकोण के साथ मेरे मन ने भी सही ठहराया।<br />परन्तु उपरोक्त चुनी हुईं पंक्तियों को पढ़ते पढ़ते लगा जैसे शब्द साधना भंग हो रही हो।करारा प्रहार हुआ अंतरात्मा पर । जाने अनजाने स्वयं के द्वारा किये गए प्रकृति विरोधी कृत्य चलचित्र की भाँति आँखों के आगे घूमने लगे। और विचलित हुई तो ध्यान भटक कर दुनिया भर की ख़बरों और अनुभवों पर मंडराने लगा। अत्यंत लज्जा का अनुभव हुआ आपकी इस कविता के आगे। मन अपराध बोध से ग्रसित था इस क्षण।<br /><br />आगे पढ़ा ...<br /><br />''पूर्ण विकसित रूप ..... शुभ-कामना से '' <br /><br />...और स्वयं को संभाला...खुद को वचन दिया आगे से सतर्क और सजग रहने का। अब से अपने साथ साथ आस पास के लोगों को भी सावधान करती रहूँगी।<br /><br />जब पूर्वार्द्ध पढ़ी थी तब उसके कुछ दिनों पहले सिक्किम और नेपाल भूकंप से दहले हुए थे...आज ये रचना पढ़ रही हूँ तो तुर्की में ध्वस्त मकानों और बदहवास भागते रहवासियों की छवि बार बार उभर रही है। मन भीगा है एकदम..कारण और निवारण दोनों ही हम हैं..किन्तु कहाँ अपने स्वार्थ से ऊपर उठ पाता है मनुष्य...या यूँ कहूँ कि उठना ही नहीं चाहता है।और इसमें मैं भी शामिल ही हूँ :(<br /><br />ख़ैर, <br />अच्छा हुआ प्रतिभा जी...बहुत आभार आपका..आपने ये दोनों रचनायें लिखीं...माँ धरती की आराधना के साथ साथ शायद बहुत से पाठक धरती के प्रति अपने कर्तव्यों को जानने,समझने और उन्हें आत्मसात करने का प्रयत्न करेंगे ,मैं भी।<br /><br />नमन आपकी लेखनी को !Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-34513865363343600932011-10-16T11:20:19.841-07:002011-10-16T11:20:19.841-07:00अहा!
मन को तृप्त करता है यह काव्य।
सचमुच, माता धरि...अहा!<br />मन को तृप्त करता है यह काव्य।<br />सचमुच, माता धरित्री के वंदन हेतु योग्य शब्द यही हैं।Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-23930213082359572022011-10-08T20:53:30.931-07:002011-10-08T20:53:30.931-07:00सुन्दर शब्द संयोजन. अद्भुत प्रस्तुति में मनमोहिनी ...सुन्दर शब्द संयोजन. अद्भुत प्रस्तुति में मनमोहिनी भावाभिव्यक्ति. आभार.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-51449083033127278952011-10-07T10:28:52.475-07:002011-10-07T10:28:52.475-07:00पूर्ण विकसित रूप दे मानव तुझे माँ ने सहेजा,
शु...पूर्ण विकसित रूप दे मानव तुझे माँ ने सहेजा, <br />शुभाशंसा सृष्टि की ले सर्वभूतों की कुशलता ,<br />मान कर दायित्व अपना ,आत्म निष्ठ विचारणा से<br />भावना से भर विवेकी बुद्धि से, शुभ-कामना से .<br /><br />अद्भुत काव्य व भावाभिव्यक्ति।देवेंद्रhttps://www.blogger.com/profile/13104592240962901742noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-15921642965889620842011-10-05T10:34:36.365-07:002011-10-05T10:34:36.365-07:00अद्भुत भावाभिव्यक्ति, सुन्दर शब्द संयोजन।अद्भुत भावाभिव्यक्ति, सुन्दर शब्द संयोजन।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-37717746035728956272011-10-05T09:38:43.543-07:002011-10-05T09:38:43.543-07:00फिर धरा के मंच पर नव-सृष्टि का शुभ अवतरण हो,
बहुत ...फिर धरा के मंच पर नव-सृष्टि का शुभ अवतरण हो,<br />बहुत सुंदर भाव और लय-छंद बद्ध रचना।<br />आभार। विजयदशमी की शुभकामनाए।<br />आपको पढ़ते वक़्त प्रसाद जी की याद आ जाती है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com