tag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post8844605759919686744..comments2023-12-29T02:05:21.545-08:00Comments on शिप्रा की लहरें: काँच की चूड़ियाँ -प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-35316986985535967102016-09-21T11:24:11.692-07:002016-09-21T11:24:11.692-07:00नेह भरे शब्दों से समझाना चाहा है कि जातां से रखो ...नेह भरे शब्दों से समझाना चाहा है कि जातां से रखो , इन चूड़ियों वाले हाथ जिनके हों उन्हें कोई चुभन न हो .... पर होता कहाँ है ऐसा ..सबसे ज्यादा चोट तो इनको ही मिलती है . संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-57568151492884374872016-09-03T00:05:26.779-07:002016-09-03T00:05:26.779-07:00रीझि रीझि रहसि रहसि ज्यों चूँड़ियाँ रंग रचीं रीझि रीझि रहसि रहसि ज्यों चूँड़ियाँ रंग रचीं Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-73183834752783240182016-08-01T02:57:02.195-07:002016-08-01T02:57:02.195-07:00वाह ... कितने कितने आयाम ... कितने बिम्ब, कितने मं...वाह ... कितने कितने आयाम ... कितने बिम्ब, कितने मंजर खड़े कर दिए कांच की चूड़ियों की थाह को सार्थक कर दिया आपने ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-13938339722465723462016-07-23T22:25:36.180-07:002016-07-23T22:25:36.180-07:00नारी के सौभाग्य एवं शृँगार की प्रतीक काँच की चूड़ि...नारी के सौभाग्य एवं शृँगार की प्रतीक काँच की चूड़ियों की खनक मन को<br />उल्लसित कर जाती है । नारी भावनात्मक रूप से काँच की चूड़ियों से जुड़कर स्वयं को गौरवान्वित भी अनुभव करती है । उस आनन्दानुभूति को सुन्दर शब्दों में सँजोने के लिये कवयित्री को अनेक साधुवाद !!शकुन्तला बहादुरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-46350844200881233112016-07-15T07:16:34.650-07:002016-07-15T07:16:34.650-07:00आभारी हूँ ,आ. शास्त्री जी!आभारी हूँ ,आ. शास्त्री जी!प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-47609981390895930642016-07-14T01:05:03.619-07:002016-07-14T01:05:03.619-07:00वाकई कांच की चूड़ियों की खनक और धनक की बात ही कुछ औ...वाकई कांच की चूड़ियों की खनक और धनक की बात ही कुछ और है..आपके संगीतमय शब्दों ने जब उनकी महिमा गाई हो तो क्या कहने..आजकल तो इनका प्रचलन कम होता जा रहा है पर अभी भी कितनी ही कलाइयों की शोभा बढ़ाती हैं...हरे कांच की चूड़ियाँ...Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-24038993514079089272016-07-13T21:15:03.556-07:002016-07-13T21:15:03.556-07:00आभारी हूँ, कुलदीप जी !आभारी हूँ, कुलदीप जी !प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com