tag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post7901222996663167839..comments2023-12-29T02:05:21.545-08:00Comments on शिप्रा की लहरें: सार्थक रहने दो शब्दों को --प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-13511766513229555522016-10-02T00:26:48.771-07:002016-10-02T00:26:48.771-07:00 बहुत गंभीर बात है बहुत गंभीर बात है संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-3962491486831219762016-09-23T10:07:27.864-07:002016-09-23T10:07:27.864-07:00आज शब्दों को जिस तरह लिया जा रहा है वो केवल मजाक ह...आज शब्दों को जिस तरह लिया जा रहा है वो केवल मजाक है उनके सही अर्थों का ... इनकी गरिमा का भान न भाशाविधों को है न प्रयोग करने वालों को ... <br />बहुत ही सार्थक लिखा अहि आपने ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-45863451767418543282016-09-22T08:02:50.940-07:002016-09-22T08:02:50.940-07:00आभार ! आभार ! प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-21447876623685465082016-09-21T11:07:43.976-07:002016-09-21T11:07:43.976-07:00हमेशा ही शब्दों के गहन अर्थ होते हैं लेकिन शब्दों ...हमेशा ही शब्दों के गहन अर्थ होते हैं लेकिन शब्दों की गरिमा को न समझ अपने हिसाब से उनको परिभाषित कर शब्दों के रूढ़ अर्थों के साथ खिलवाड़ ही है . सादर संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-4361776849069452772016-09-21T05:25:40.137-07:002016-09-21T05:25:40.137-07:00http://bulletinofblog.blogspot.in/2016/09/3.htmlhttp://bulletinofblog.blogspot.in/2016/09/3.htmlरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-24129510976888126712016-09-19T12:06:37.522-07:002016-09-19T12:06:37.522-07:00मेरी समझ में भी नही आया कि यह संज्ञा कब और किसने ग...मेरी समझ में भी नही आया कि यह संज्ञा कब और किसने गढ़ी लेकिन मैंने अभी अभी सुनी और सोच में भी पड़ गई कि इसका अर्थ व उद्देश्य क्या है . क्या यह संज्ञा उस अभाव को दूर कर सकेगी . हरिजन से याद आया कि हमारे एक अध्यापक शब्द के पद-च्युत होजाने के उदाहरण स्वरूप इस शब्द का भी उल्लेख करते थे . एक अन्य उदाहरण में अरहर की टट्टी गुजराती ताला में टट्टी शब्द जब तक टटिया यानी किवाड़ के अर्थ में था तब तक ठीक था . फिर ओट के रूप में .और अन्त में विष्ठा के लिये प्रयुक्त होकर एक अच्छा खासा शब्द अपनी प्रतिष्ठा खो बैठा . सचमुच इसे शब्दों के साथ अनाचार ही कहा जाएगा . आपने एक बहुत ही अच्छा प्रश्न उठाया है . गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-7742877261429122632016-09-17T07:51:24.807-07:002016-09-17T07:51:24.807-07:00मम्मी! मेरा इशारा उसी ओर था, किन्तु कुछ सीमाएँ होत...मम्मी! मेरा इशारा उसी ओर था, किन्तु कुछ सीमाएँ होती हैं एक सरकारी अधिकारी की, जिसने मुझे रोक लिया. आपने मेरे मन की बात कह दी और मुझे संतोष हुआ कि मैंने कविता के मर्म को महसूस किया! चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-84701051910838048832016-09-16T13:13:56.395-07:002016-09-16T13:13:56.395-07:00बिलकुल ठीक समझा सलिल तुमने,बिना शब्द की पृष्टभूमि ...बिलकुल ठीक समझा सलिल तुमने,बिना शब्द की पृष्टभूमि समझे प्रभाव और महत्व जाने उसे किसी बहाने से अपकर्षित कर दिया जाय तो ,आगे के लिये वह शब्द ही संस्कार-च्युत हो जायेगा और अब तक चले आ रहे भावार्थ को भी उद्विग्न कर देगा .<br />देखो न ,अब तक दिव्य एक अलग ही भाव जगाता था-अलौकिक,भव्य मुक्त आदि और अब विकलांग या हीनांग के अर्थ में आये तो दिव्य वसन-भूषण पहिराये ,दिव्य तेज दिव्यरूप दिव्यांगना आदि के सारे बिंब बाधित हो जायेंगे अर्थ की रमणीयता समाप्त करता दूसरा ही विपरीत भाव सामने अड़ जायेगा .<br />'मेरे मं में तो ऐसे कई शब्द कोलाहल मचाते हैं जिनके साथ दुराचार हुआ है इन दिनों.'- मानती हूँ <br />कई शब्द हैं पर उदाहरण तो दो-एक के ही दिये जा सकते हैं .<br />प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-57718305439454306852016-09-16T07:24:30.093-07:002016-09-16T07:24:30.093-07:00"जैसे एक दृष्टिहीन
औरों को बना गया समर्थ
शब..."जैसे एक दृष्टिहीन <br />औरों को बना गया समर्थ <br />शब्दों का स्पर्श देकर!"<br /><br />इन तीन पंक्तियों में शब्दों की महिमा छिपी है... वे शब्द जो चमत्कार करते हैं, क्योंकि इन शब्दों में एक पूरा व्यक्तित्व, एक संतति, एक लंबी श्रृंखला होती है. <br />गांधी जी ने जब यह शब्द "हरिजन" दिया तो उसमें अन्तर्निहित भाव यह था कि एक विशाल वर्ग को एक सम्मान की छतरी दी जाए. <br />किन्तु शब्दों के साथ छेड़छाड़ और उसके छिपे हुए अर्थ अपने अर्थ खोते गए... हरिजन को बहुजन बना दिया गया... और शब्द भी भाषाई गरिमा से विलग होकर राजनैतिक पंक का अविभाज्य अंग बन गए.<br />पता नहीं मैं इस कविता के मर्म को स्पर्श कर पाया भी हूँ की नहीं, लेकिन भाषा की दुर्दशा पर व्यथित हूँ. मेरे मं में तो ऐसे कई शब्द कोलाहल मचाते हैं जिनके साथ दुराचार हुआ है इन दिनों. चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-32891364912967407052016-09-16T01:24:44.958-07:002016-09-16T01:24:44.958-07:00शब्द अर्थात ओंकार का नाद .. अब तो केवल शोरगुल रह ग...शब्द अर्थात ओंकार का नाद .. अब तो केवल शोरगुल रह गया है ।Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-41625761286846639022016-09-13T10:06:01.381-07:002016-09-13T10:06:01.381-07:00बहुत सार्थक, उपयुक्त और प्रभावी अभिव्यक्ति है , जो...बहुत सार्थक, उपयुक्त और प्रभावी अभिव्यक्ति है , जो मन पर छा गई । अत्यन्त विचारणीय भी है । "दिव्य" शब्द एक अलौकिक आभा से मंडित था, नाम बदलने से रूप तो नहीं बदलता , व्यक्ति का उपहास मात्र होकर<br />रह जाता है , खटकता है । शब्दों का ये विकृत अर्थ मन को आहत करता है । यही दुर्घटना तो "हरिजन" के साथ भी हुई है । मुझे भी ये अनर्थ काफ़ी दिनों से व्यथित कर रहा है ।Shakuntalahttps://www.blogger.com/profile/13145636095236359373noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-6599605405552915252016-09-13T08:19:49.896-07:002016-09-13T08:19:49.896-07:00हम्म...हम्म...देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-24467373757408771512016-09-13T02:08:40.719-07:002016-09-13T02:08:40.719-07:00जहाँ तक मुझे याद है यह शब्द उस अदृश्य को दिखाने के...जहाँ तक मुझे याद है यह शब्द उस अदृश्य को दिखाने के लिए रचा गया था जो इतनी विषमताओं के मध्य न जाने किस द्वार से प्रकट हो ही जाता है न कि विकलता को दर्शाने के लिए..फिर भी आपकी चिंता अपनी जगह सही है Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-43273816800274907312016-09-13T01:56:37.708-07:002016-09-13T01:56:37.708-07:00दिव्यता में प्रभुता है !! सार्थक सोच ,उत्कृष्ट...दिव्यता में प्रभुता है !! सार्थक सोच ,उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ! <br />सादर प्रणाम .Anupama Tripathihttps://www.blogger.com/profile/06478292826729436760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-10219759003299582032016-09-12T23:35:01.478-07:002016-09-12T23:35:01.478-07:00आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में"...<i><b> आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 14 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है....<a href="http://halchalwith5links.blogspot.in" rel="nofollow"> http://halchalwith5links.blogspot.in </a>पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! </b></i>yashoda Agrawalhttps://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-38691602791985733502016-09-12T23:25:41.296-07:002016-09-12T23:25:41.296-07:00पता नहीं समझ पाया हूँ या नहीं पर जो भाव उठा संकोच ...पता नहीं समझ पाया हूँ या नहीं पर जो भाव उठा संकोच के साथ कह दे रहा हूँ आज राख और मिट्टी तक बेच लेने वालों के लिये शब्दों के कपड़े उतार कर रख देने में भी कोई शर्म कहाँ रह गयी है ? राजकाज शब्दों के श्रंगार से नहीं चलता है । <br /><br />बहुत सुन्दर ।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.com