tag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post6944123127406925205..comments2023-12-29T02:05:21.545-08:00Comments on शिप्रा की लहरें: बहुत याद आती हैप्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-15107772812702648232011-02-09T10:30:36.258-08:002011-02-09T10:30:36.258-08:00जाने कैसे चुपके से ढल जाते हैं अब तो मेरे जीवन के ...जाने कैसे चुपके से ढल जाते हैं अब तो मेरे जीवन के साँझ सकारे..:) <br /><br />यूँ ही तो नहीं कहते ना...कि..वक़्त हर घाव का मरहम है...:)..सच में कितना बड़ा संकट आ जाए..समय को अपनी गत से चलते ही रहना है....न एक पल का विराम....न एक पल की अधीरता....<br /><br />'मैं दूर रहूँ ,या पास रहूँ ,इससे क्या ,तुम फूलो फलो हँसो हर दम हर क्षण में '<br />एकदम से स्पष्ट नहीं करते कविता के शब्द कि आखिर इनके द्वारा कौन सा दुःख बतलाया जा रहा है..और इसी से..बहुआयामी हो गयी है ये कविता.........मैंने भी अपनी एक तो तकलीफें इससे जोड़कर देख लीं...और समापन इतना सुखद और सकारात्मक था..कि अच्छा ही हुआ मैंने खुद को जोड़ कर आपकी कविता पढ़ी......मन अच्छा हो गया...खूब सारा आभार..इस कविता हेतु..:)<br /><br /> आज अखबार में पढ़ा था ''..जो लोग आपको मुस्कुराने पर विवश करते हैं....असल में वो बहुत महत्वपूर्ण होते हैं....उनके लिए सदा आभार प्रगट करना चाहिए..क्यूंकि वो दर'असल एक किस्म के बागवां होते हैं...जो आपकी आत्मा को खिलाकर रखते हैं..'' :) mere liye aapka kavi man bhi isi tarah ka baagwaan hai..:DTaruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.com