tag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post6765189910036223670..comments2023-12-29T02:05:21.545-08:00Comments on शिप्रा की लहरें: वही मैंप्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-25020054945718599172011-04-03T03:39:11.379-07:002011-04-03T03:39:11.379-07:00दिन मैं सूरज गायब हो सकता है
रोशनी नही
दिल टू ...दिन मैं सूरज गायब हो सकता है<br /> <br />रोशनी नही<br /> <br />दिल टू सटकता है<br /> <br />दोस्ती नही<br /> <br />आप टिप्पणी करना भूल सकते हो<br /> <br />हम नही<br /> <br />हम से टॉस कोई भी जीत सकता है <br /> <br />पर मैच नही <br /><br />चक दे इंडिया हम ही जीत गए<br /><br />भारत के विश्व चैम्पियन बनने पर आप सबको ढेरों बधाइयाँ और आपको एवं आपके परिवार को हिंदी नया साल(नवसंवत्सर२०६८ )की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!<br /><br />आपका स्वागत है<br /><a href="http://sawaisinghrajprohit.blogspot.com/2011/03/blog-post.html" rel="nofollow">"गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका!"</a><br />और <br /><a href="http://rajpurohitagra.blogspot.com/2011/04/121.html" rel="nofollow"> 121 करोड़ हिंदुस्तानियों का सपना पूरा हो गया</a><br />संदेश जरुर दे!Sawai Singh Rajpurohithttps://www.blogger.com/profile/14297388415522127345noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-51233075121129878182011-04-02T21:44:32.949-07:002011-04-02T21:44:32.949-07:00बहुत गहन अभिव्यक्ति|
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामना...बहुत गहन अभिव्यक्ति|<br />नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ| धन्यवाद|Patali-The-Villagehttps://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-14809146427763276732011-04-02T18:25:01.111-07:002011-04-02T18:25:01.111-07:00बहुत गहन अभिव्यक्ति....जबरदस्त!!!बहुत गहन अभिव्यक्ति....जबरदस्त!!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-56598826592982040332011-04-01T23:37:18.044-07:002011-04-01T23:37:18.044-07:00Pratibha ji, bahut hi gahre bhaaw hain, Badhayi.
...Pratibha ji, bahut hi gahre bhaaw hain, Badhayi.<br /><br />-----------<br /><a href="http://za.samwaad.com/" rel="nofollow">क्या ब्लॉगों की समीक्षा की जानी चाहिए?</a><br /><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">क्यों हुआ था टाइटैनिक दुर्घटनाग्रस्त?</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-88874593995160553132011-03-31T10:48:03.956-07:002011-03-31T10:48:03.956-07:00जी...प्रतिभा जी..
मैंने नारी प्रधान दिमाग ज़्यादा ...जी...प्रतिभा जी..<br />मैंने नारी प्रधान दिमाग ज़्यादा लगा लिया था..और आपके कविता के प्रारंभ में ''जब होती हूँ..'' पढ़ कर और तेज़ी से बुद्धि रूढ़िवादी समाज और स्त्रियों की ओर दौड़ पड़ी....यहीं मैं अर्थ को बाँध रही थी....इसलिए अंत को समझने में असमंजस बना रहा था.....<br /><br />बहुत बहुत शुक्रिया प्रतिभा जी....चाहती थी आपके शब्दों में भावार्थ समझूं....पूछने की हिम्मत ही नहीं हुई थी।<br />:(Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-71995417701854113262011-03-31T10:30:32.609-07:002011-03-31T10:30:32.609-07:00आशा जी ,
'अपने आप को ढूढ पाईं'- कहाँ? यह त...आशा जी ,<br />'अपने आप को ढूढ पाईं'- कहाँ? यह तो निरंतर खोज है .कभी क्षणिक आभास मिलता है वही व्यक्त हो जाता है ,बस!प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-80086946881209044082011-03-31T05:35:10.174-07:002011-03-31T05:35:10.174-07:00अविभाजित ,अनिरुद्ध ,
अपनी संपूर्णता में स्थित !
...अविभाजित ,अनिरुद्ध ,<br /><br />अपनी संपूर्णता में स्थित !<br /><br />वही हूँ मैं ,<br /><br />बस वही !...<br />आप अपने आप को ढूढ पाईं बधाई । वरना तो जिंदगी इस खोज में ही बीत जाती है ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-34943136629139239502011-03-31T03:40:39.217-07:002011-03-31T03:40:39.217-07:00सचमुच, उस क्षण कुछ भी कोई अर्थ कहाँ रखता है?
स्व म...सचमुच, उस क्षण कुछ भी कोई अर्थ कहाँ रखता है?<br />स्व में ही सम्पूर्णता है।<br />सघन, अटल, दीप्त शब्द।Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-54099363000752897052011-03-30T13:16:26.527-07:002011-03-30T13:16:26.527-07:00तरु,
अपने आप में संपूर्ण , विधि-निषेध से परे ,द्वं...तरु,<br />अपने आप में संपूर्ण , विधि-निषेध से परे ,द्वंद्वों से रहित अपने आत्म में स्थित (यहाँ स्त्री-पुरुष का कोई भेद नहीं) बाह्य प्रभावों से निरपेक्ष. इस स्थिति का आभास कभी हर व्यक्ति को हो सकता है . <br />वैसे सबके अपने अर्थ .प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-43236798023298720572011-03-30T12:45:30.870-07:002011-03-30T12:45:30.870-07:00हम्म
प्रतिभा जी,
बड़ी कठिन सी रचना प्रतीत हुई मु...हम्म <br />प्रतिभा जी,<br /><br />बड़ी कठिन सी रचना प्रतीत हुई मुझे तो...:( या शायद समझ का फेर पड़ गया..ant में बहुआयामी keh कर स्वयं को संतुष्ट कर लिया....<br /><br />दरअसल..<br /><br />पहले मैं इसे बेड़ियों में जकड़ी हुई रूढ़िवादी समाज से पीड़ित नारी के मन से पढने की कोशिश कर रही थी........तो दूसरा अर्थ निकल रहा था...,''मतलब एक नारी (या एक व्यक्ति भी कहा jaa सकता है..)..जो स्वतंत्र अस्तित्व में नहीं है...मगर स्वयं को जब पा लेती है किन्ही अनुकूल क्षणों में....तो वो ''बस वही'' होती है जिसका आपने कविता में चित्रण किया...'' <br />और यही सोचते हुए कविता के अंत में व्याकुल होता था मन...कि हम बंधे हुए ही हैं...तो अकेले में ''बस वही...मैं हूँ'' कहने का कोई औचित्य कहाँ है भला...:(..जब सब कहीं हम ''बस वही'' ही नहीं हो सकते ..?? यही सोच सोच के परेशान हो रही थी....:(<br /><br />फिर जब दूसरे तरीके से पढ़ा...कि,''..... यूँ ही एक जागरूक ,बुद्धिमती स्त्री है....जो किसी के भुलावे बहकावे में ना आकर अपने निर्णयों के लिए स्वतंत्र है....उतनी क्षमता रखती भी है....जिसके लिए मुझे ये न सोचना पड़े कि जो stri ''वही मैं हूँ'' कह रही है....क्या वो सब कहीं इसी तरह से अपने आप को अभिव्यक्त कर सकती होगी....?? विपरीत परिस्थितयां भी जिसका ''आप'' न बदल सकती हों..........'' (is arth mein zyada shanti aur santushti thi)<br /><br />इन दो अर्थों के साथ आपकी कविता मन और बुद्धि के पार लगी....:)<br /><br />और तीसरा अर्थ तो है ही...वही आत्म विसर्जन वाला.......संसार से तटस्थ होकर स्वयं में शान्ति खोज लेना....जहाँ बाहरी वातावरण..दैहिक संबंध और व्यवहार...''man ki shanti aur param'' ki तलाश में गौण हो जाते हैं.........<br /><br />आभार इस कविता के लिए..jisne इतना सोचने के लिए विवश किया..:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-20132203875814265262011-03-30T11:19:43.158-07:002011-03-30T11:19:43.158-07:00सुरेशजी के ब्लॉग से होते हुए आपका पता मिला. सरल-सह...सुरेशजी के ब्लॉग से होते हुए आपका पता मिला. सरल-सहज शब्दों में नदी-सी बहती आपकी कवितायें मन को छू लेती हैं. लिखती रहें, क्योंकि 'साहित्यिक गैंगवार' के आज के दौर में आप जैसे सरल-सहज लेखको का लिखना जरूरी है. हिन्दी के लिए भी और हिन्दुस्तान के लिए भी.Jitendra Davehttps://www.blogger.com/profile/04316093164602468349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-24489575121087592312011-03-30T04:46:56.718-07:002011-03-30T04:46:56.718-07:00स्वयं को ढूंढ़ लेना भी जीवन को सम्पूर्णता से जी ले...स्वयं को ढूंढ़ लेना भी जीवन को सम्पूर्णता से जी लेना है !<br />कई बार पढ़ा इस रचना को,हर बार सोच की तह और गहरी होती चली गयी !ज्ञानचंद मर्मज्ञhttps://www.blogger.com/profile/06670114041530155187noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-72069339051189283802011-03-30T03:24:42.563-07:002011-03-30T03:24:42.563-07:00आत्म में निवसित ,
शीष उठाए संनद्ध ,
अविभाजित ,अन...आत्म में निवसित ,<br /><br />शीष उठाए संनद्ध ,<br /><br />अविभाजित ,अनिरुद्ध ,<br /><br />अपनी संपूर्णता में स्थित !<br /><br />वही हूँ मैं ,<br /><br />बस वही !...<br /><br />-----<br /><br />Pratibha ji , <br /><br />I bow my head before 'The beautiful YOU' !<br /><br />Very inspiring creation .<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-4678065395247105672011-03-29T23:09:27.742-07:002011-03-29T23:09:27.742-07:00वाह! एक एक शब्द अर्थातीत ...या विद्या सा विमुक्तये...वाह! एक एक शब्द अर्थातीत ...या विद्या सा विमुक्तये! एकदम से विमुक्ति का भाव कितना आह्लादकारी है न !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3160220647065410925.post-59733959479050522992011-03-29T20:12:11.678-07:002011-03-29T20:12:11.678-07:00अपने में समाना प्रारम्भ कीजिये, छोटे से हृदय में व...अपने में समाना प्रारम्भ कीजिये, छोटे से हृदय में विश्व का विस्तार है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com