गुरुवार, 10 जून 2010

रोशनाई से .

स्याही से नहीं रोशनाई से लिखो कलम !
लेखनी , सँवारो रूप-रंग शब्दों का भी,
उद्घाटित कर दो मर्म कि सब छँट जायँ भरम.
*
अध्याय बदल दो ,पन्ना नया पलट लो अब ,
कुछ नई अर्थिता चिंगारियां बिखर जाएं.
इस अंध तमस में तपन प्रज्ज्वलित भऱ स्वर की
निर्बाध बहें शिव-संकल्पों की धाराएँ !
निखरे-निखरे पल हों, विरोध- प्रतिरोध शमन.
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कैसा विश्राम ? थकन का नाम न ले यह गति ,
मति आत्मसीमिता रहे न विभ्रम की कारा.
यह समय निरर्थक जाय न ऊहापोहों में ,
ऊर्जित मन के आकाशों में हो ध्रुव तारा.
नभ छोर जगा दें प्रखर दीप्ति के आवाहन !
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स्याही से नहीं रोशनाई से लिखो कलम !
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